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(२७) मान्यतानुसार कथासृष्टि के वर्णन से प्रारम्भ होती है । प्रथम २४ उद्देशों में ऋषभादि तीर्थंकरों के वर्णन इक्ष्वाकु वंश की उत्पत्ति बतलाते हैं। ऋषभदेव का वर्णन करते हुए उस समय कृतयुग में क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन्हीं तीन वर्षों का वर्णन है।
पउमचरिय के अन्तः परीक्षण से हमें गुप्त-वाकाटक युग की अनेक प्रकार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सामग्री मिलती है। इसमें वर्णित अनेक जन-जातियों, राज्यों और राजनैतिक घटनाओं का तत्कालीन भारतीय इतिहास से सम्बन्ध स्थापित किया गया है। दक्षिण भारत के किलों और पर्वतों का उल्लेख है तथा आनन्दवंश और क्षत्रप रुद्रभूति का भी उल्लेख है । उज्जैन और दशपुर राजाओं के बीच संघर्ष, गुप्त राजा कुमार गुप्त और महाक्षत्रपों के बीच संघर्ष की सूचना देता है। इसमें नंद्यावर्तपुर का उल्लेख है जिनका वाकटकों की राजधानी नन्दिवर्धन से साम्य स्थापित किया जाता है। ३. वसुदेव हिण्डी :-- - आगम-बाह्य ग्रन्थों में यह कृति कथा साहित्व में प्राचीनतम मानी जाती है। वसुदेव हिण्डी का रचना काल पाँचवीं शताब्दी माना जाता है।' इस ग्रथ के लेखक संघदासतगणि वाचक हैं। यह मुख्यतया गद्यात्मक समासात पदावलि में लिखी गई एक विशिष्ट रचना है, बीच-बीच में इसमें पद्य भी आ जाते हैं । भाषा, सरल, स्वाभाविक और प्रसादगुण युक्त है। भाषा प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत है, जिसकी तुलना चूर्णी ग्रंथों से की जा सकती है।
इसके अन्तर्गत कृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण का वृतान्त है, इसलिए इसे वसूदेव चरित्र नाम से भी जाना जाता है। इसमें हरिवंश की स्थापना की गई है और कौरव-पाण्डवों को गौण स्थान दिया गया है। निशीथ, विशेषचूर्णी में सेतु और चेटक कथा के साथ वसुदेव चरित्र का उल्लेख है। इस ग्रंथ के दो खण्ड हैं। पहले खण्ड में २६ लंभक ११,००० श्लोक प्रमाण हैं । दूसरे खण्ड मे ७१ लंभक १७,००० श्लोक प्रमाण हैं । प्रथम खण्ड के लेखक संघदासगणिवाचक और दूसरे के धर्म
१. प्राकृत साहित्य का इतिहास पृ० ३८१.. २. वही पृ० ३८२. ---