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________________ ( २६ ) का उपदेश दिया । तत्पश्चात् अपने पुत्रों का राज्याभिषेक कर श्रमण धर्म दीक्षा ग्रहण की। पूर्वार्ध भाग के सुषमा- सुषमा नामक चौथे आरे में अरहंत, चक्रवर्ती और दशारवंशों में २३ तीर्थंकर, ११ चक्रवर्ती, ६ बलदेव, ६ वासुदेव उत्पन्न हुये । तीसरे वक्षस्कार में भरत चक्रवर्ती और उनकी दिग्विजय का विस्तृत वर्णन है । इस अवसर पर भरत और किरातों की सेनाओं में घनघोर युद्ध का वर्णन किया गया है । ' २. पउमचरिय : 1 " पउमचरिय” कृति जैन पुराण साहित्य में सबसे प्राचीन है । ग्रंथ के अन्त में दी हुई प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके कर्त्ता नाइलकुल वंश के विमलसूरि थे । प्रशस्ति में दी हुई एक गाथा से पता चलता है कि यह कृति वीर निर्वाण संवत् ५३० में अर्थात् ई० सन० ४ मे लिखी गई थी । प्रो० याकोबी ने विमलसूरि का समय ई० सन् की चौथी शताब्दी माना है । जैन मान्यतानुसार इसमें राम कथा का वर्णन है । यह ११८ अधिकारों में विभक्त है जिनमें कुल ८६५१ गाथएँ हैं, जिनका मान १२ हजार श्लोक प्रमाण है । इसमें राम का नाम पद्म दिया गया है । वैसे राम नाम भी उद्धृत किया गया है । इस ग्रंथ के रचने में ग्रंथकार का मूल उद्देश्य यह था कि वह प्रचलित राम कथा के ब्राह्मण रूप को अपने सम्प्रदाय के लिए जैन रूप में प्रस्तुत करना था । - पउमचरिय की कथावस्तु सात अधिकारों में विभक्त है । स्थिति, वंशोत्पत्ति, प्रस्थान, रण, लव-कुशोत्पत्ति, निर्वाण और अनेक भव । जैन १. जगदीशचन्द्र जैन, सम्पा० दलसुखभाई मालवणिया तथा डा० मोहनलाल मेहता "जैन साहित्य का बृहद् इतिहास" भाग २, वाराणसी, पार्श्वनाथ शोध संस्थान, १९६६, पृ० १२२. २. गुलाब चंद चौधरी, सम्पा० दलसुख भाई मालवणिया तथा डा० मोहनलाल मेहता : जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग-६, वाराणसी: पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान १६७३, पृ० ३८. ३. जगदीशचन्द्र जैन प्राकृत साहित्य का इतिहास, वाराणसी : चौखम्बा विद्याभवन, १९६१, पृ० ५२८.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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