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________________ (२०) जैन पुराणों में उक्त विचार परिलक्षित होते हैं । महापुराण में पुरातन को पुराण कहा गया है। इसी पुराण में अन्यत्र पुराण को "इतिहास", " इतिवृत्त " तथ । “ऐतिह्य" कहा गया है ।" यही विचार कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी पाया जाता है । आलोचित जैन पुराणों में इतिहास तथा पुराण को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि इतिवृत्त (इतिहास) केवत्र घटित घटनाओं का ही वर्णन करता है, परंतु पुराण उनसे प्राप्त फलाफल, पुण्य-पाप का भी वर्णन करता है और व्यक्ति के चरित्र-निर्माण की अपेक्षा बीच-बीच में नैतिक और धार्मिक भावनाओं का भी प्रदर्शन करता है । इतिवृत्त में केवल वर्तमानकालिक घटनाओं का ही उल्लेख रहता है, परन्तु पुराण में नायक के अतीत, अनागत भावों का भी उल्लेख रहता है और वह इसलिए कि जन-साधारण समझ सकें कि महापुरुष किस प्रकार बना जाता है । अवनत से उन्नत बनने के लिए दया तथा त्याग और तपस्याएँ करनी पड़ती हैं। वस्तुतः मनुष्य के जीवननिर्माण में पुराण का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है । यही कारण है कि उसमें जनसाधारण की श्रद्धा आज भी यथापूर्ण अक्षुण्ण है । ' जैन पुराणों के उद्भव के विषय में कहा गया है कि तीर्थकर आदि के जीवनों के कुछ तथ्यों का संग्रह स्थनांग सूत्र में मिलता है । जिसके आधार पर श्वेताम्बर आचार्य हेमचन्द्र आदि ने “त्रिषष्टि महापुराण " आदि की रचनाएँ कीं । दिगम्बर परम्परा में तीर्थंकर आदि के चरित्र के तथ्यों का प्राचीन संकलन हमें प्राकृत भाषा के “तिलोय पण्णति" ग्रन्थ में मिलता है। चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण, नौ बलभद्र तथा ग्यारह रुद्रों के जीवन तथ्य भी इसी में संग्रहीत हैं । इन्हीं के आधार से विभिन्न पुराणकारों ने अपनी लेखनी के बल पर छोटे-बड़े अनेक पुराणों की रचना की है ।" जैन पुराणों की विशेषतायें : जैन पुराणों में न केवल कथानक मात्र है, अपितु प्रसंगानुसार धर्म १. पुरातन पुराणं स्यात् । महा० पु० १/२१. २. वही - १/२५. ३. पुरातनं पुराणं स्यात् । महा० पु० प्रस्तावना पृ० १६. ४. महा० पु० प्रास्ताविक, पृ० ७.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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