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(१९) जैन पुराण जैनेत्तर अष्टादश पुराणों से भिन्न हैं। यहाँ मैं सिर्फ जैन पुराणों का ही विवेचन करूगी। जैन पौराणिक महाकाव्यों की कथावस्तु जैन धर्म के शलाका पुरुषों तथा तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव आदि ६३ महापुरुषों के जीवन चरित्रों को लेकर निबद्ध की गई है। इनके अलावा अन्य धार्मिक पुरुषों के जीवन-चरित्र भी वर्णित हैं। इन काव्यों को पूराण चरित्र या माहात्म्य नाम से भी जाना जा सकता है। भारतीय साहित्य में कुछ ऐसे राष्ट्रीय चरित्र हैं, जो सभी वर्गों को रूचिकर हैं। जैसे :-राम, कृष्ण और कौरव, पाण्डवों के चरित्र भी इसी प्रकार के हैं। इनकी कथावस्तु को लेकर ही रामायण, महाभारत और हरिवंश पुराण आदि की रचना हुई है। जैनों के महाकाव्य भी इन्हीं राष्ट्रीय चरित्रों को लेकर प्रारम्भ होते हैं।
जैन पुराणों में “पुराण" के दो भेद बतलाये गये हैं। "पुराण" और “महापुराण" । जिसमें एक शलाकापुरुष का चरित्र-चिवण वर्णित हो उसे पुराण कहते हैं और जिसमें तिरेसठ शलाका पुरुषों के चरित्र वर्णित हों, उसे महापुराण कहते हैं।' इसके अलावा सृष्टि की रचना, विश्व का स्वरूप, खगोल, भूगोल आदि का भी विस्तृत वर्णन उद्धत होता है।
वैदिक ग्रंथों में इतिहास और पुराण शब्द साथ-साथ अर्थात् इतिहास वेद तथा पुराण वेद के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, परन्तु वहां पर इतिहास का अर्थ स्पष्ट नहीं है। उत्तर वैदिक काल में इतिहास और पुराण स्पष्ट रूप से प्रकाश में आये। पौराणिक एवं अपौराणिक साक्ष्यों का अध्ययन करने के पश्चात् पं० बलदेव उपाध्याय इस निष्कर्ष पर पहंचे कि इतिहास और पुराण का अन्तर परवर्तीकाल में मिलता है ।
कौटिल्य के अर्थ-शास्त्र में पुराण के साथ "इतिवृत्त" शब्द वर्णित है, जो कि इतिहास है । इतिहास को पुराण, इतिवृत्त, आख्यान, धर्मशास्त्र, तथा अर्थशास्त्र कहा गया है। १. महा पु० १/२२-२३, पाण्डव पुराणम् : शुभचन्द्र सम्पा० ए० एन० उपाध्ये ___ तथा हीरालाल जैन, शोलापुर, जौवराज गौतमचन्द दोशी १६५४, पृ० ६. २. पुराण विमर्श पृ० ६. ३. अर्थशास्त्र-कौटिल्य, अनु० शाम शास्त्री, मैसूर, ओरीएन्टल लाइब्ररी, १९२६ ,
५/१३-१४. .. .... --