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(१८) उल्लेख हो वह पुराण है। अर्थात् सर्ग, प्रतिसर्ग आदि पुराण के पाँच लक्षण हैं।
पुराण शब्द का उल्लेख सबसे पहले वैदिक ग्रन्थों में मिलता है। ऋग्वेद में कई स्थानों पर पुराण शब्द का उल्लेख है।' अथर्ववेद के दो मंत्रों में “पुराण" तथा "पुराणवित्" शब्द मिलते हैं। गोपथ ब्राह्मण में उपनिषद कल्प आदि के साथ-साथ पुराण को वेदांग के रूप में माना है। इसमें अन्यत्र दो प्रसंगों “पुराणवेद" और इतिहासवेद” का भी उल्लेख है। पं० बलदेव उपाध्याय के अनुसार इस समय तक “इतिहास" तथा "पुराण" में भिन्नता हो चुकी थी।
जैनाचार्यों ने जैन पुराण का उद्भव तीर्थकर ऋषभदेव से बताया है। महापुराण में पुराण के आदिकर्ता महावीर और उत्तरकर्ता गौतम गणधर को बताया गया है। पुराणों का विकास बतलाते हए जिनसेनचार्य का कथन है कि आदि ब्रह्मा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने सर्व प्रथम भरत को प्रथम पुराण सुनाया था। उसी पुराण को गौतम गणधर ने श्रेणिक को सुनाया था। कालान्तर में इसी पुराण का विकास हुआ।
१. "ऋग्वेद" : सम्पा० विश्वबन्धुः विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान १९६४-६५.
३/५८/६, १०/१३०/६. २. "अथर्ववेद" भाग ४ : पं० श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, पारडी, स्वाध्याय
मण्डल, १९५८, ११/७/२४. ३. वही-११/८/७. ४. गोपथ ब्राह्मण १/२/१०, आधार, देवी प्रसाद मिश्र : जैन पुराणों का सांस्कृतिक
अध्ययन, शोध प्रबन्ध, इलाहाबाद. संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग विश्वविद्यालय
१९७६, पृ० १. ५. वही६. आचार्य बलदेव उपाध्यायः पुराण विमर्श, वाराणसी, चौखम्बा विद्याभवन,
१९६५, पृ० १. ७. महा पु० १/२०७. ८. वही