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________________ (१०) तत्त्वों का निरूपण किया है। अब हम रामायण में निहित राजनैतिक तत्त्वों पर विचारणा करेंगे। रामायण-कालीन भारत में एकछत्र साम्राज्य का अभाव था। सम्पूर्ण भारत अलग-अलग खण्डों में विभक्त था। उन समय प्रत्येक राज्य की अपनी सीमा निश्चित होती थी। प्रत्येक सीमा में अलग-अलग राजा राज्य करते थे। रामायण के अध्ययन से ज्ञात होता है कि "तत्कालीन शासन-व्यवस्था का स्वरूप मर्यादित राजतंत्र था” राजव्यवस्था का विकास पूर्व वैदिक जन-व्यवस्था के आधार पर हुआ था। जन-पद युग में राजतंत्र तथा उसकी उत्पत्ति से सम्बन्धित दार्शनिक कल्पनाओं का उद्भव हुआ, राजतंत्र की उत्पत्ति के शक्ति-सिद्धान्त का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में भी मिलता है। जिसमें कि प्राकृतिक वातावरण से नियमविहीन समाज तथा उसके अन्तर्गत शक्तिहीन के ऊपर शक्तिशाली के अत्याचारों का उल्लेख किया गया है, जैसा कि महाभारत में भी निहित है। "रामायण में अराजक जनपद तथा उससे उत्पन्न होने वाले दुगणों तथा अत्याचारों का विशद विवेचन किया गया है।"२ अराजक समाज में “मत्स्य-न्याय" प्रचलित हो जाता है, जिसका तात्पर्य है, बड़ी मछली द्वारा छोटी मछली को निगल जाना । ऐसी विकट परिस्थिति में राजा की आवश्यकता पर बल दिया गया। रामायण में वर्णित कुछ आदर्श राजाओं के नाम इस प्रकार हैं .- जनक महान, विदेह राजा, केकय राजा, अश्वपति, काशी के ब्रह्मदत्तवंशीय राजा और राम आदि । राजतंत्रीय शासन-व्यवस्था के अन्तर्गत जनता की सुरक्षा का भार राजा पर निर्भर था। प्रजा अपनी रक्षा के लिए चिन्तित रहती। आदर्श राजतंत्र प्रणाली में अयोध्या के राजा राम तथा केकय, अश्वपति के नाम उल्लेखनीय हैं जिन्होंने अपने कर्तव्यों के प्रति महान नैतिक उत्तरदायित्व अदा किया है। उदाहरणार्थ राम ने अपनी प्रजा को प्रसन्न रखने के लिए निर्दोष पत्नी सीता को वनवासित किया था । १. शान्तिकुमार नानूराम व्यास : रामायणकालीन समाज, दिल्ली सत्साहित्य प्रकाशन, १९५८, पृ० २५४. रामायण वाल्मीकि, सम्पा० एन० रामरत्नार्येण, मद्रास आर० नारायणस्वाम्याएँ, १९५८, अयोध्या काण्ड, ६७/३१.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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