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________________ महाभारत के पश्चात् कौटिल्य के प्रसिद्ध ग्रंथ अर्थ-शास्त्र का हम वर्णन करेगे । इसका रचना-काल ई० पू० तीसरी शती लगभग है।' यह राज्य-शास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । इममें राजनीति का विस्तार से वर्णन किया गया है । यह ग्रंथ धर्म-शास्त्र की विचारधारा से प्रभावित नहीं है। इसका विषय मूल रूप में राज्य-शास्त्र है। “कौटिल्य अर्थ-शास्त्र" के प्रथम विभाग में नपतंत्र से सम्बन्धित विषयों पर विचार किया गया है। दसरे विभाग मे अधिकारियों के कर्त्तव्य-क्षेत्र एवं अधिकारों का वर्णन किया गया है। इससे अगले दो विभागों में दीवानी तथा फौजदारी कानून, दाय भाग तथा रस्म-रिवाजों का विवेचन है। पांचवें विभाग में राजा के अनुचरों के कर्तव्यों का वर्णन तथा छठे विभाग में राज्य की सप्त प्रकृतियों के स्वरूप और कर्तव्यों का विधान है। शेष : विभागों में परराष्ट्रनीति :- विभिन्न राजाओं के सम्वन्ध, उनको पराभूत करने के उपाय, संधि-विग्रह के उपयुक्त अवसर, युद्ध के तरीके, शत्रओं में फूट डालने के उपाय आदि विषयों का विशद वर्णन निहित है। अर्थशास्त्र का उद्देश्य शासन-कार्य में राजा को मार्ग-निर्देशन करना था। नृपतंत्र या शासन-व्यवस्था के मूल सिद्धान्तों का दार्शनिक विवेचन उसमें नहीं मिलता है। शासन की वास्तविक समस्याओं को सुलझाना ही इसका उद्देश्य था और युद्ध तथा शान्तिकाल में शासनतंत्र का क्या स्वरूप और कार्य होने चाहिए, इसका वर्णन अर्थ-शास्त्र में हुआ है वह बाद के ग्रन्थों में शुक्र-नीति के अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता। अर्थशास्त्र राजनीति का सिद्धान्त नहीं, किन्तु शासन की राजनीतिक, अर्थनीति व प्रशासन का शास्त्रीय एवं व्यवहारमूलक विवरण और परिप्रेक्ष्य दोनों ही हैं । अर्थ-शास्त्र के वही लक्षण उसकी शक्ति एवं मर्यादा बन गई है। अभी हमने महाभारत एवं अर्थ-शास्त्र के अन्तर्गत राजनैतिक .. १. हिन्दू राजतंत्र, पृ० ३२७.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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