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________________ ... (७) अर्थ और काम त्रिवर्ग और चतुर्थ मोक्ष और उसके त्रिवर्ग सत्व, रज और तम का विवेचन किया है । इसके साथ ही उन्होंने दण्डज त्रिवर्ग, स्थान काल और सहाय के अतिरिक्त अन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता और दण्डनीति, साम दाम, दण्ड और भेद सम्बन्धित विषयों का वर्णन किया है। यह ग्रन्थ अन्यन्त विशाल था । इन्द्र ने इसको पांच हजार अध्ययन प्रमाण किया तथा इसका बाहुदंतक ऐसा नाम दिया । बृहस्पति ने इसकी तीन हजार अध्ययन प्रमाण रचना की तथा यह बृहस्पत्य नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके पश्चात् शुक्राचार्य ने इस शास्त्र को एक हजार अध्ययन प्रमाण में संक्षिप्त कर दिया।' इस प्रकार ब्रह्मा ने नीति-शास्त्र की रचना की और अपने मानस-पुत्र विरजस की सष्टि करके उसे राजा बनाया। जनता ने भी उसके अनुशासन में रहना स्वीकार किया। इस विवरण से स्पष्ट है कि राज्य की उत्पत्ति दैवी मानी जाती थी। यूरोप में भी विशेषतः मध्ययुग में ईसाई मत के प्रभाव से शासनसंस्था को दैवी समझा जाता था। राजा परमेश्वर का साक्षात् प्रतिनिधि है व उसे राज्य करने का अधिकार ईश्वर प्रदत्त था। इस्लाम धर्म का मत भी इससे मिलता जुलता है ; उनके अनुसार बादशाह खुदा का प्रतिबिम्ब माना जाता था। महाभारत के वर्णन से राज्य-शास्त्र एवं दण्डनीति की प्राचीनता प्रकट होती है । महाभारत में अधिकांश रूप से राजसत्तात्मक राज्यों के विषय में ही विवेचन किया गया है। महाभारत में विशालाक्ष, इन्द्र, बृहष्पति, शुक्र, भारद्वाज, मनु आदि राजनीति के ग्रन्थकारों के नाम उल्लेखनीय हैं । प्राचीन भारतीय ग्रंथकारों की यह प्रथा थी कि वह बहुधा स्वयं अज्ञात रहकर अपने ग्रन्थों पर देवताओं एवं पौराणिक ऋषियों के नाम दे दिया करते थे। मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, पराशरस्मृति तथा शुक्रनीति आदि नाम इनके उदाहरण हैं। १. वही पृ० १२६, श्लोक ८५. २. J.S. Bains :-Studies in Political Science, Asia Publishing House, Nagendra Singh : The Concept of force in the Political Theory of Ancient India, Page 181.-..
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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