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________________ ( ६ ) राज्य के निर्माताओं और ग्रन्थों का परिचय हमें केवल महाभारत एवं कौटिल्य के अर्थ - शास्त्र से होता है । यद्यपि इन दोनो ग्रन्थों का विषय स्वरूप, दृष्टिकोण और परम्पराओं में भिन्नता है फिर भी उल्लिखित पूर्व सूरियों के नामों में अन्तर नहीं है । महाभारत के शान्तिपर्व के ५६ में अध्याय में वर्णित है कि राज्य की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ? महाभारत शान्तिपर्व के अनुसार सृष्टि के प्रारम्भ में सत्ययुग था । उस समय न राज्य था, न राजा, न दण्ड, और न ही दण्ड के पात्र कोई व्यक्ति । एक मात्र धर्म का अनुसरण करते हुये ही परस्पर अपना रक्षण करते थे ।' लेकिन यह सत्ययुग बहुत समय तक नहीं रहा । वाद में किसी प्रकार अधःपतन आरम्भ हो गया । लोग सदाचार से भ्रष्ट होकर स्वार्थ, लोभ और वासना के वश में हो गये और जिस स्वर्गीय व्यवस्था में वे रहते थे वह नरक बन गयी । " " मत्स्य न्याय” (जिसकी लाठी उसकी भैंस) का बोलबाला हुआ । वलवान् निर्बलों को खाने लगे । देवता भी यह सब देखकर चिन्तित हुए और उन्होंने इस दुर्दशा का अंत करने का निश्चय किया । लोग ब्रह्मा की शरण में पहुंचे । ब्रह्माजी इस निर्णय पर पहुंचे कि मनुष्य जाति की तब ही रक्षा हो सकेगी, जब एक आचारशास्त्र बनाया जाये और उसे राजा के द्वारा कार्यान्वित किया जाय । अतः उन्होंने एक लाख अध्याय वाले नीति - शास्त्र की रचना की। इसमें धर्म, १. महाभारत शान्तिपर्व : कृष्णद्वैपायनवेदव्यास प्रणीत, भाषान्तरकर्त्ताः शास्त्री गिरिजाशंकर मयाशंकर, अहमदाबाद: भिक्षु अखंडानंद १६६६, अध्याय ५६, नियतस्त्वं नरणाध्न शृणु सर्वमशेषतः । यथा राज्यं समुत्पन्नमादी कृतयुगे - ऽभवत् ।। ३ ।। न वै राज्यं न राजाऽऽसीन्न च दण्डो न दाण्डिकः । धर्मेणेव प्रजाः सर्वा रक्षन्ति स्भ परस्परम् ॥ ४ ॥ २. पाल्यमानास्तथान्योऽन्यं नराधर्मेण भारत । खेदं परमुवाजग्मुस्ततस्तान्मोह आविशत || 5 || प्रतिपत्तिविमोहाच्च धर्मस्तेषामनीनशत् । कामो नामापरस्तत्र प्रत्यपयत वे प्रभो ।। १८ ।। महाभारत शान्तिपर्व ३ महाभारत शान्तिपर्व पृ० १२५, श्लोक २६.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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