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......- १६२) मण्डित की बहन आसन पर बैठाकर उसका पाद-प्रक्षालन करती, बाद में उसे कुएँ में ढकेल देती थी। ____ चोरों को पकड़ने वाले राजा भी उस समय बहुत चतुर तथा बुद्धिशाली होते थे। मूलदेव जब राजा बन गया तो उसने मण्डित चोर को पकड़ने के बहुत प्रयत्न किये, परन्तु उसका पता नहीं चला। एक दिन मूलदेव नीलवस्त्र धारण कर चोर की खोज में निकला। वह एक स्थान पर छिप कर बैठ गया। थोड़ी देर बाद वहां पर मण्डित आया, पूछने पर मूलदेव ने अपने को कापालिक भिक्ष बताया। मण्डित ने कहा चल तुझे आदमी बना दूं। मूलदेव उसके पीछे-पीछे चल दिया। मण्डित ने किसी घर में सेंध लगाकर चोरी की, और चोरी का माल उसके सिर पर रखकर अपने घर पर लिवा लाया। मण्डित ने अपनी बहन को बुलाकर अतिथि के पादप्रक्षालन करने को कहा। लेकिन मण्डित की बहन को मूलदेव के ऊपर दया आ गयी और उसने उसे कुएँ में न ढकेल, भाग जाने का इशारा कर दिया ।
- मूलदेव भागकर एक शिवलिंग के पीछे छिप गया। मण्डित ने अंधेरे में शिवलिंग को चोर समझ कर तलवार से उसके दो टुकड़े कर डाले। प्रातः काल होने पर मण्डित रोज की भांति दर्जी का काम करने राजमार्ग पर बैठ गया। मूलदेव ने मण्डित को राजदरबार में बुलवाया। मण्डित समझ गया कि रात वाला भिक्षु और कोई नहीं, राजा मूलदेव ही था। मुलदेव ने मण्डित की बहन से शादी करके बहुत सा धन प्राप्त किया और फिर मण्डित को शूली पर चढ़वा कर मरवा दिया।
उपर्युक्त कथा के अलावा मूलदेव, विजय और रोहिणेय चोर की कथाएँ भी जैन-ग्रन्थों में आती हैं । इनमें से रोहिणेय चोर इतना चतुर एवं बद्धिशाली था कि उसे कोई नहीं पकड़ सका । यहां तक कि अभय कुमार भी चारों बद्धियों का स्वामी भी चोर साबित नहीं कर सका। एक बार पकड लिये जाने पर भी चोरी का प्रमाण नहीं मिलने पर अभय कुमार ने राजा श्रेणिक की आज्ञा से उसे छोड़ दिया। छूट जाने के पश्चात् रोहिणेय
१. उत्तराध्ययन टीका ४.