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________________ (१५५) आचार्य जिनसेन के अनुसार बंध और बन्धन आदि शारीरिक दण्ड भरत के समय में प्रचलित हुए।' इस प्रकार जैनागमों में सात प्रकार की दण्डनीति वर्णित है। आचार्य हरिभद्रकालीन शासन पद्धति के अन्तर्गत दण्ड व्यवस्था बहुत कठोर थी। साधारण से साधारण अपराध पर कठोर दण्ड दिया जाता था। समराइच्चकहा के अनुसार पुरुषजातक तथा परद्रव्यावहारी की उसके जीते जी आंख, कान, नाक हाथ, तथा पांव आदि अंग काटकर अंग भेद कर दिया जाता था। चोरी करने पर भयंकर दण्ड दिया जाता था। राजा चोरों को जीते जी लोहे के कुम्भ में बंद कर देते, उनके हाथ कटवा देते और शूली पर चढ़ा देना तो साधारण बात थी। एक बार की बात है कि किसी ब्राह्मण ने एक बनिये की रुपयों की थैली चुरा ली। राजा ने हुक्म दिया कि अपराधी को सौ कोड़े लगाये जायें, नहीं तो विष्ठा खिलाई जाये। ब्राह्मण ने कोड़े खाना मंजूर कर लिया, लेकिन कोड़ों की मार न सह सकने के कारण उसने बीच में ही विष्ठा खाने की इच्छा व्यक्त की। __ इस प्रकार का एक उदाहरण जिनसेन कृत महापुराण में आता है कि एक दिन कोतवाल ने एक विवदेग नाम का चोर पकड़ा। उसके हाथ में जो धन था उसे लेकर कहा कि बाकी का धन और दो। धन न देने पर रक्षकों ने उसे दण्ड दिया तब उसने कहा कि बाकी का धन मैंने विमति को दे दिया, मैंने नहीं लिया । जब विमति से पूछा गया तब उसने कह दिया कि मैंने नहीं लिया। इसके बाद कोतवाल ने वह धन किसी उपाय से विमति के घर ही देख लिया, विमति को दण्ड देना निश्चित हुआ। दण्ड वेने वालों ने कहा कि या तो मिट्टी की थाली में विष्ठा खाओ, या मल्लों २. महा पु० ३/२१६, पृ० ६५ शरीर पणन व बंध बंधादिलक्षणाम् । नृणां प्रबल दोषाणां भरतेन नियोजितम्। ३. समराइन्धकहा एक सांस्कृतिक अध्ययन पृ ८३. ४. वही ४. माचारोग चूर्णी २ पृ.० ६५....
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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