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hi तीस मुक्कों की चोट सहो या अपना सारा धन दो । जीवित रहने की इच्छा से उसने तीनों दण्ड सहन किये। अर्थात् आदि पुराण के अनुसार अपराध सिद्ध होने पर अभियुक्त को मृत्तिका भक्षण, विष्ठा भक्षण, मल्लों द्वारा मुक्के तथा सर्वस्व हरण आदि प्रकार का दण्ड दिया जाता था ।
इसके अलावा राजकर्मचारी चोरों को वस्त्रयुगल पहनाते, गले में कनेर के पुष्पों की माला डालते, और उनके शरीर को तेल से सिक्त कर उस पर भस्म लगाते । फिर उन्हें नगर में चौराहों पर घुमाया जाता, घूंसों, लातों, डंडों और कोड़ों से पीटा जाता। उनके होंठ, नाक और कान काट लिए जाते । रक्त से लिप्त मांस को उनके मुँह में डाला जाता और फिर खण्ड-पटह से अपराधों की घोषणा की जाती थी ।
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अभियुक्त को नगर में बाँध के साथ घोषणा पूर्वक घुमाने का तात्पर्य लोगों को अपराध न करने के लिए भयभीत करना था ताकि नगर में अथबा राज्य में अपराधों की कमी हो ।
इसके अतिरिक्त लोहे या लकड़ी में अपराधियों के हाथ-पैर बांध दिये जाते, खोड़ में पैर बांधकर ताला लगा दिया जाता, हाथ, पैर, जीभ, सिर, गले की घंटी अथवा उदर को छिन्न-भिन्न कर दिया जाता । कलेजा, आंख, दांत, और अण्डकोश आदि मर्म स्थानों को खींचकर निकाल लिया जाता था । शरीर के छोटे-छोटे टुकडे कर दिये जाते, रस्सी में बाँध कर गड्ढे में और हाथ बांध कर वृक्ष की शाखा में लटका देते, हाथी के पैर के नीचे डालकर रौंदवा देते। चंदन की भाँति पत्थर पर रगड़ते, दही की भाँति मथते, कपडे की भांति पछाड़ते, गन्ने की भांति पेलते, मस्तक को भेद देते, खार में फेंक देते, खाल उधेड़ देते, लिंग को मरोड़ देते । आग में 'जला देते, कीचड़ में धंसा देते । गर्म शलाका शरीर में घुसेड़ देते । धार, कटु और तिक्त पदार्थ जबर्दस्ती पिलाते, छाती पर पत्थर रख कर तोड़ते, लोहे के डंडों से वक्षस्थल, उदर और गुह्य अंगों का छेदन करते, लोहे की मुग्दर से कूदते, चांडालों के मुहल्ले में रख देते । देश से निर्वासित
१. आदि पु० ४६ / २६२ - ९३/४७१-७२.
२. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ०८२.