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________________ ( १३३ ) इस पर बैठकर वे भगवान नेमिनाथ के दर्शन के लिए जाते थे । * हाथियों को सन्नद्ध - बद्ध करके, उज्जवल वस्त्र, कवच, गले में आभूषण और कर्णपूर पहना, उर में रज्जू बाँध, उन पर लटकती हुई जूले डाल, छत्र, ध्वजा और घंटे लटका, अस्त्र-शस्त्र तथा ढालों से शोभित किया जाता था । जैन मान्यतानुसार जंगली हाथियों को पकड़ कर भी शिक्षा दी जाती थी । विन्ध्याचल के जंगलों में हाथियों के झुण्ड के झुण्ड घूमते थे, उन्हें नल के वनों में पकड़ा जाता था। हाथियों की शिक्षा के लिये यह कहा गया है कि पहले उन्हें सूंढ़ से काष्ट, फिर छोटे पत्थर, फिर गोलों, फिर बेर और फिर सरसों उठाने का अभ्यास कराया जाता था। हाथियों को शिक्षा देने वाले दमग उन्हें अपने वश में रखते तथा उन्हें मेंड, हरे गन्ने, यवस आदि खिलाकर उन्हें अपनी सवारी के काम में लेते थे । कौशाम्बी का राजा उदयन अपने मधुर संगीत से हाथियों को वश में करने की कला में निष्णात समझा जाता था । मूलदेव ने भी वीणा बजाकर हथिनी को वश में किया था । कभी-कभी हाथी सांकल तुड़ाकर भाग जाते और नगरी में उपद्रव उत्पन्न कर देते थे । ऐसे समय में कोई राजकुमार या साहसी पुरुष हाथी की सूंढ़ के आगे गोलाकार लिपटा हुआ उत्तरीय वस्त्र फेंककर उसके क्रोध को शांत करते थे । महावत अंकुश की सहायता से हाथियों को वश में रखते थे । और झूल, वैजयन्ती ( ध्वजा ), माला और विविध अलंकारों से उन्हें विभूषित करते थे। हाथियों की पीठ पर अम्बाड़ी रखी जाती थी जिस पर कि बैठा हुआ मनुष्य दिखाई नहीं देता था । हाथियों को स्तम्भों बाँधा जाता और उनके पाँवों में मोटे-मोटे रस्से बाँधे जाते थे । I हरित सेना से शत्रुसेना को रौंदने का काम लिया जाता था । कौटिल्य ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिये हस्तिसेना के प्रधान १. ज्ञातृधर्मकथांग ५, २. अर्थशास्त्र २ / ३१. ३. आवश्यक चूर्णी २, पृ० १६१. ४. उत्तराध्ययन टीका ३.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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