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________________ ( १३१) आँखें (दृष्टि) लगी रहती थी।' घोड़ों को अश्वशाला में रखा जाता था तथा उनको खाने के लिए यवस और तुष दिया जाता था। भरत चक्रवर्ती के अश्वरत्न का नाम कमलामेला था। सनत्कुमार चक्रवर्ती अपने जलधिकिल्लोल नामक घोड़े पर भ्रमण करता था । वह घोड़ा बहुत ही तीव्र गति से भागता तथा क्षण भर में ही अदृश्य हो जाता था । (III) हस्ति सेना: चतुरंगिणी सेना के अन्तर्गत हस्ति सेना का विशिष्ट महत्त्व होता था। तत्कालीन युद्धों जैसे राम-रावण युद्ध, शत्रुघ्न-लवणासुर युद्ध आदि में गज-सेना का उपयोग किया गया था। नागरिकों और सामरिक दोनों प्रकार की आवश्यकताओं के लिए तथा राजकीय वैभव और समद्धि के प्रदर्शन में हाथियों का अनिवार्य रूप से प्रयोग होता था। अपने उदार सौम्य और भव्य स्वरूप के लिए हाथी मूल्यवान होते थे। अच्छी नस्ल के हाथी सावधानीपूर्वक पाले जाते थे। हाथियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए राजाओं के पास विशाल वन होते थे, जो कि "नागवन" नाम से प्रसिद्ध थे। हाथियों की अनेक जातियाँ होती थीं। गंधहस्ति को सर्वोत्तम माना गया है। ऐरावत इन्द्र के हाथी का नाम था। उत्तम हाथी के सम्बन्ध में जैन आगम, पुराणों में कहा गया है कि वह सात हाथ ऊँचा, नौ हाथ चौडा, मध्य भाग में दस हाथ, पाद पुच्छ आदि सात अङ्गों से सूप्रतिष्ठित, सौम्य, प्रमाणयुक्त, सिर उसका उठा हुआ, सुख-आसन से १. निशीथभाष्य २०, ६३९६. २. व्यवहारभाष्य १०, ४८४, कौटिल्य अर्थशास्त्र २/३०, पृ० २१४. ३. उत्तराध्ययन टीका अ० ४ ४. आ० चूर्णी पृ० १९६. ५. उत्तराध्ययन टीका अ० १८. ६. डा० लल्लनजी सिंह : रामायणकालीन युद्धकला, आगरा : अभिनव प्रकाशन १९८२-८३, पृ० १३४. ७. आ० चूर्णी २, पृ० १७०, श्रेणिक के सेचनक हस्ति और कृष्ण के विजय हस्ति को गंधहस्ति कहा गया है। यह हस्ति अपने यूथ का अधिपति होता था, और अपनी गंध से अन्य हस्तियों को आकृष्ट करता था।
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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