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व्यवहार भाष्य में साधारणतया पैदावार के दसवें हिस्से को कानूनी टैक्स स्वीकार किया गया है। वैसे पैदावार की राशि, फसल की कीमत, बाजारभाव और खेत की जमीन आदि के कारण टैक्स की दर में अन्तर होता रहता था । खेत और गाय आदि के अतिरिक्त प्रत्येक घर से भी टैक्स वसूल किया जाता था । राजगृह में किसी वणिक ने पक्की ईंटों का मकान बनवाया लेकिन गृह निर्माण पूरा होते ही वणिक मर गया । उसके पश्चात् वणिक के पुत्र बड़ी मुश्किल से अपनी आजीविका चला पाते थे । ऐसी हालत में भी उन्हें नियमानुसार राजा को एक रुपया कर देना आवश्यक था । इस परिस्थिति से तंग आकर वे अपने घर के पास ही एक झोंपड़ी बनाकर रहने लगे । और अपना घर जैन श्रमणों को रहने के लिये दे दिया । जान पड़ता है कि शूवरिक नगर के वणिक लोगों में कर देने की प्रथा का प्रचलन नहीं था । यहाँ पर वणिकों के ५०० परिवार रहते थे । एक बार राजा ने प्रत्येक परिवार के ऊपर एक-एक रुपया कर लगा दिया । वणिकों ने सोचा कि यदि यह कर चल पड़ा तो उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी को इसे देते रहना पड़ेगा । यह सोचकर वे अग्नि में प्रवेश कर गये ।
व्यापारियों के माल असबाब पर भी कर लगाया जाता था । बिक्री के माल पर लगाये जाने वाले टैक्स को शुल्क कहते थे । किसी व्यापारी के पास बीस कीमती बर्तन थे, उनमें से एक बर्तन राजा को देकर वह कर से मुक्त हो गया । चम्पा नगरी के जल पोत वणिक बाहर से धन कमाकर लौटे और गंभीरपोतपट्टन में उत्तर मिथिला नगरी में आये । राजा के लिये बहुमूल्य कुण्डल युगल का उपहार लेकर वे उससे भेंट करने चले । राजा कुण्डल युगल देखकर बहुत प्रसन्न हुआ । उसने उनका विपुल अशन, पानी आदि द्वारा सत्कार किया और उनका कर (शुल्क) माफ कर दिया । ( इस कथन से ज्ञात होता है कि प्राचीन समय में व्यापारी राजाओं के
१. व्यवहार भाष्य १ पृ० १.८ आ०
२. वही ३,४७७०
३. नि० भाष्य १६, ५१५६.
४. नि० भाष्य २०, ६५२१
५. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ८, पृ० २७२