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________________ (१२५) सामने कीमती उपहार आदि भेंट करने से राजा उनसे खुश हो जाते थे तथा उनका कर भी माफ कर देते थे।) आजकल की भांति प्राचीन समय में भी व्यापारी लोग माल को छिपा लेते और टैक्स से बचने की कोशिश करते थे। अचल नाम का एक व्यापारी था। पारसकुल से वह धन कमाकर वेन्यातट लौटा । और हिरण्य, सुवर्ण और मोतियों का थाल भरकर वह राजा के पास पहुंचा। राजा पंचकूलों के साथ ले उसके माल की परीक्षा करने आया। अचल ने शंख, सुपारी, चंदन, अगुरू, मंजीठ आदि अपना माल दिखा दिया; लेकिन राजा को शंका हुई तो बोरों को तुलवाया तो वे भारी मालूम दिये। राजकर्मचारियों ने पांव की ठोकर और बाँस की डंडी से पता लगाया तब मालूम हुआ कि मंजीठ के अन्दर सोना, चांदी, मणि, मुक्ता और प्रवाल आदि कीमती सामान छिपा हुआ है। यह देखकर राजा ने अचल को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया।' नीतिवाक्यामृत में भी भूमिकर के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं पर लगने वाले कर भी राज्य की आय के साधन थे। शुल्क से राज्य को पर्याप्त धन प्राप्त होता था। विक्रेता और क्रेता से राजा को जो भाग प्राप्त होता वह शुल्क कहलाता है । शुल्क प्राप्ति के स्थान हट्टमार्ग (चुगी-स्थान) आदि हैं। इन स्थानों का सुरक्षित होना आवश्यक है। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि वहाँ पर न्यायोचित कर ही ग्रहण किया जाये। यदि वहाँ पर किसी भी प्रकार का अन्याय होगा तो व्यापारी लोग अपना माल लाना बंद कर देंगे। और इससे राजकीय आय को क्षति पहुंचेगी। आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि आय के स्थान में व्यापारियों में थोड़ा सा भी अन्याय का धन ग्रहण करने से राजा को महान आर्थिक हानि होती है. क्योंकि व्यापारियों के क्रय-विक्रय के माल पर अधिक कर लगाने से वे लोग भारी कर के भय से व्यापार बंद कर देते हैं या छल-कपट का व्यवहार करते हैं जिसके फलस्वरूप राज्य को भारी हानि होती है। १. उत्तराध्ययन टोका, अ० ३ । कौटिल्य ने अर्थशास्त्र (२/२१/३६, पृ० १७८) में बताया है कि बढ़िया माल को छिपाने वाले का सारा माल जब्त कर लेना चाहिए। २. नोतिवापयामृतम् १४/१४.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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