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(१२१) अनबन चलती रहती थी। नहपान के पास माल-खजाना बहुत था। और शालिवाहन के पास सेना बहुत थी। एक बार शालिवाहन ने नहपान की नगरी पर आक्रमण कर उसे चारों ओर से घेर लिया। लेकिन नहपान ने इस अवसर पर अपने सारे खजाने के द्वार खोल दिये। और जो सिपाही शत्रु के सैनिकों के सिर काट कर लाते, उन्हें वह मालामाल कर देता था। इससे शालिवाहन के सैनिकों को बहुत क्षति उठानी पड़ी और वह हार कर लौट गया। इस तरह कई वर्ष तक होता रहा। एक दिन शालिवाहन ने अपने मंत्री को लड़-भिड़कर देश से बाहर निकाल दिया। मंत्री भृगुकच्छ पहुँचकर नहपान से मिल गया। और धीरे-धीरे राजा का विश्वास प्राप्त कर वह वह मन्त्री के पद पर आसीन हो गया। वहाँ रहकर उसने स्तूप, तालाब, वापी देवकुल आदि के निर्माण में नहपान का अधिकांश धन लगवा दिया, और जो शेष रहा उससे रानियों के आभूषण बनवा दिये। इस प्रकार नहपान का सारा खजाना खाली हो जाने पर शालिवाहन के पास सूचना भेज दी। शालिवाहन सूचना पाते ही सेना लेकर नहपान के राज्य पर चढ़ आया और नहपान को युद्ध में हरा दिया।' ___ इसके अलावा राजकार्यों में सत्परामर्श देना मंत्रियों का प्रधान कर्तव्य होता था। मनु ने लिखा है कि इन सचिवों के साथ राजा को राज्य की विभिन्न विकट परिस्थितियों में तथा सामान्य, सन्धि, विग्रह, राष्ट्ररक्षा तथा सत्पात्रों आदि को धन देने के कार्य में नित्य परामर्श करना चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक कार्य मन्त्रियों के परामर्श से करने में राज्य का कल्याण होता है। यद्यपि राजा को प्रत्येक कार्य मंत्रिपरिषद के परामर्श से करने का विधान था, किन्तु राजा इन मन्त्रियों के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं था। मंत्रियों से परामर्श करने के उपरान्त उसको अपना व्यक्तिगत निर्णय देने का अधिकार स्मृतिकारों ने राजा को प्रदान किया है। किंतु राजा इन मंत्रियों के परामर्श का उल्लंघन उसी समय कर सकता था जबकि उनके परामर्श में एकरूपता न हो और वह राष्ट्र के हित के लिए अपना निर्णय अधिक उपयोगी समझता हो। १. आ० चू० २ पृ० २०० इत्यादि । २ मनु ७/५८. ३. वही ७/५७.