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________________ लिये और राजा को ज्यों के त्यों कह सुनाये। इस पर राजा ने वररुचि को दान देना बन्द कर दिया। इस प्रकार सगडाल मंत्री ने राजकोष के खाली होने से पूर्व की उसकी रक्षा कर ली थी। इसके अलावा आन्तरिक उपद्रवों और बाह्य आक्रमणों से राज्य की रक्षा करने के लिए मंत्रीगण गुप्तचरों को धनादि देकर नियुक्त करते थे। सूचक, अन्तःपुर के रक्षकों के साथ मैत्री करके अन्तःपुर के रहस्यों का पता लगाते, अनुसूचक नगर के परदेशी गुप्तचरों की तलाश में रहते। प्रतिसूचक नगर के द्वार पर बैठकर दर्जी आदि का छोटा-मोटा काम करते हुए दुश्मन की ताक में रहते तथा सर्वसूचक, सूचक, अनुसूचक और प्रतिसूचक से सब समाचार प्राप्त कर अमात्य से निवेदन करते। ये गुप्तचर सभी पुरुषों और कभी महिलाओं के रूप में सामन्त राज्यों और सामन्त नगरों तथा अपने राज्य, अपने नगरों और राजा के अन्तःपुर में गुप्त रहस्यों का पता लगाने के लिये घूमते रहते ।। ... हरिवंश पुराण के अनुसार मंत्री राजा को अत्यन्त निकटस्थ आपत्तियों से रक्षा करते थे।' पद्म पुराण में तो यह भी वर्णित है कि मंत्री राजकन्या के लिए योग्य वर के चयनार्थ परामर्श भी देते थे। जैन पुराणों के अनुसार मंत्रीगण तन्त्र (स्वराष्ट्र) और अवाय (परराष्ट्र) के सम्बन्ध में राजा के साथ नीति-निर्धारण करते थे। जैन मान्यतानुसार मंत्री शत्रु को पराजित कर, राज्य की रक्षा के लिये सदैव प्रयत्नशील रहते । कभी कूटनीति से राजा मंत्री को झूठमूठ ही सभासदों के सामने अपमानित कर राज्य से निकाल देता। ऐसी परिस्थिति में यह मंत्री विपक्षी राजा से जा मिलता था। फिर वहाँ शनैः शनैः उसका विश्वासपात्र बनकर उसे पराजित करके ही लौटता था। भृगुकच्छ के राजा नहपान और प्रतिष्ठान के राजा शालिवाहन दोनों में कुछ १. आ० चूर्णी उ० पृ० १८३-१८४. २. व्यवहार भाष्य १ पृ० १३० अ० इत्यादि । ३. हरिवंश पु० १४/६६. ४. पद्म पु० १५/२६. ५. पद्म पु० १०३/६ । तन्त्रापाय महाभारं ततः प्रभृति भूपतिः । महा पु० ४६/७२)
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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