SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११९) को अपने वश में कर लिया। फिर एक दिन उसमे राजा श्रेणिक के चित्रपट को अन्तःपुर में भिजवा दिया जिसे देख सुज्येष्ठा और चेल्लला दोनों बहिनें श्रेणिक पर मुग्ध हो गयीं। तत्पश्चात् अभय कुमार ने अन्तःपुर सक एक सुरंग खुदवाई और चेल्लणा को प्राप्त करने में सफल हुआ। इसके अलावा अभय कुमार ने कई बार राजनैतिक संकटों से श्रेणिक की रक्षा की। एक बार उज्जयिनी के राजा चंडप्रद्योत ने चौदह राजाओं के साथ राजगृह पर आक्रमण किया। अभय कुमार ने उस समय राज्य का रक्षण किया था। उसने जहाँ शत्रु का शिविर लगता था, वहाँ पहले ही स्वर्ण मुद्राएँ गड़वा दीं। जब चण्डप्रद्योत ने आकर राजगृह को घेरा तो अभयकुमार ने सूचना करवाई कि “मैं आपका हितैषी होकर यह सूचना कर रहा हूँ कि आपके साथी राजा श्रेणिक से मिल गये हैं। अतः वह आपको पकड़कर श्रेणिक को सुपुर्द करने वाले हैं। श्रेणिक ने उनको बहुत धनराशि दी है। विश्वास न हो तो आप अपने शिविर की भूमि खुदवा कर देख लें। चण्डप्रद्योत ने भूमि खुदवाई तो उसे उस स्थान पर गड़ी हुई स्वर्ण मुद्राएँ मिलीं। भय खाकर वह ज्यों का त्यों ही उज्जयिनी लौट गया। मंत्री समय-समय पर राजा को सत्परामर्श भी दिया करते थे। महापदुम नाम का नौवाँ नंद पाटलिपुत्र में राज्य करता था। कप्पक की नौंवी पीढ़ी में उत्पन्न सगडाल उसका मंत्री का। उसके धूल-भद्द और तिरअक नाम के दो पुत्र तथा जक्खा, जक्खदिण्णा, भूया भूयदिण्णा, तेणा, वेण और सेणा नामकी सात पुत्रियाँ थीं। पाटलिपुत्र में वररुधि नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह प्रतिदिन १०८ नये श्लोक बनाकर नंद राजा की स्तुति करता था और राजा उसके बदले में उसे १०८ सुवर्ण मुद्राएँ देता था। सगडाल मंत्री ने देखा और सोचा कि इस तरह तो राजकोष बहुत जल्दी रिक्त जायेगा। इसलिए उसने एक योजना बनाई । उसकी सातों ही पुत्रियाँ बड़ी बुद्धिमान थीं। पहली पुत्री एक बार सुनकर, इसी तरह क्रमशः सातों पुत्रियाँ सात बार सुनकर याद कर देती थीं। उसने एक बार वररुचि के श्लोक सुनने के समय अपनी सातों पुत्रियों को पर्दो की आड़ में बिठा दिया। इन सातों ने श्लोक सुनकर याद कर १. आ० चूर्णी० उ० पृ० १६५. इत्यादि। २. त्रि० श० पु० च० मूल श्लो० १८४.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy