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________________ (116) मन्त्रि परिषद के कार्य राज्याधिष्ठान में अमात्य अथवा मन्त्री का पद अत्यन्त महत्वपूर्ण होता था । वह अपने जनपद, नगर और राजा के सम्बन्ध में सदा चिन्तित रहता तथा व्यवहार और नीति में निपुण होता ।। __ आचार्य कौटिल्य ने लिखा है कि कार्य के प्रारम्भ करने के उपाय, मनुष्यों और धन का कार्यों के लिए विनियोग, कार्यों को करने के लिए कौन-सा प्रदेश व कौन-सा समय प्रस्तुत किया जाये, कार्य सिद्धि के मार्य में आने वाली विपत्तियों का निवारण और कार्यों की सिद्धि ये यन्त्र (राजकीय परामर्श) के पाँच अंग होते हैं। इन्हीं कार्यों के लिए मन्त्रिपरिषद की आवश्यकता होती है। इस प्रकार आचार्य कौटिल्य ने मन्त्रिपरिषद के पाँच कार्य बतलाये हैं। जैन मान्यतानुसार भी मंत्रियों के बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य होते थे। राजा श्रेणिक का प्रधानमंत्री अभयकुमार साम, दाम, दण्ड और भेद में कुशल और नीतिशास्त्र में पण्डित, गवेषणा आदि में चतुर, अर्थशास्त्र में विशारद तथा औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कासिकी और पारिणामिकी नामक चार प्रकार की बुद्धियों में निष्णात था। राजा श्रेणिक अपने अनेक कार्यों और गुप्त रहस्यों के बारे में अभय कुमार से मंत्रणा किया करते थे। राजा श्रेणिक जब चेटक की पुत्री सुज्येष्ठा को प्राप्त करने में असफल रहा तो उसने अपने मंत्री अभय कुमार को अपनी सारी बात से अवगत कराकर उसे वैशाली रवाना किया। अभयकुमार ने वणि क का वेश धारण कर तथा अपना स्वर और वर्ण बदलकर वह राजा के कन्या अन्तःपुर के पास दुकान लेकर रहने लगा। (इस वाक्य से विदित होता है कि मंत्री राजा की इच्छा तथा कार्यों की पूर्ति करने के लिए समयानुसार वेश परिवर्तन, वर्ण परिवर्तन तथा स्वर में परिवर्तन कर लेते थे जिससे कोई उसे पहचान न सके।) - अभय कुमार ने दान, मान आदि द्वारा शीघ्र ही अन्तःपुर की दासियों १. सजणवयं पुरवरं चिन्ततो अत्थइ नरवति च । व्यवहार नीति कुसलो, अमच्चों एयारिस्रो अहवा । व्यवहारभाष्य पृ० १३१ म० तथा को० अर्थ० १ अ० ८-६. २. कौ० अर्थ० १ ० १५ पृ० ४३.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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