________________
( ११६ )
अन्वय प्राप्त, वाग्मी, शूरवीर, विद्वान्, निर्लोभी, संतोषी, सन्धिविग्रहकोविद, चतुर, वाक्- पटु, उत्साही, प्रभावशाली प्रतिभावान्, मृदुभाषी, वीर, दक्ष, स्मृतिवान्, मेधावी, स्वरयुक्त, धर्मशास्त्र का ज्ञाता, सहिष्णु, स्नेही, पवित्र, स्वाभिमानी, स्वामिभक्त, सुशील, स्वस्थ, समर्थ, दीर्घदर्शी, प्रत्युत्यन्नमति, प्रामाणिक, सत्यवादी, ईमानदार, स्मृति एवं धारणा आदि गुणों से विभूषित होना चाहिए । इनके अलावा ज्ञाता धर्मकथा में मंत्रियों की योग्यता के विषय में कहा गया हैं कि उन्हें साम, दाम दण्ड, और भेद नीति में कुशल, नीतिशास्त्र में पण्डित, गवेषणा में चतुर, कुलीन, श्रुति सम्पन्न पवित्र, अनुरागी, धीर, वीर, निरोग, प्रगल्भवाग्मी, प्राज्ञ, रागद्वेषरहित, सत्यवादी, महात्मा, दृढ़चित्तवाला, निर्भीक, प्रजा प्रिय, चारों बुद्धि का निधान, कूटनीतिज्ञ, बुद्धविद्याविशारद, अर्थ - शास्त्र विशारद आदि गुणों से युक्त होना आवश्यक बताया गया है । यद्यपि राज्य के सभी कार्यों की अन्तिम जिम्मेदारी राजा की होती थी, लेकिन फिर भी वह मंत्रियों की सलाह मानता था । " मंत्रियों का सर्वश्रेष्ठ कर्त्तव्य यह होता था कि वह राजा को कुमार्ग से हटाकर सत्मार्ग दिखलाये । राजा को शिक्षा देना मंत्री का प्रथम कर्त्तव्य होता था । खास परिस्थिति में मंत्री अयोग्य राजा को हटाकर उसके स्थान पर दूसरे राजा को गद्दी पर बैठा देता था । बसन्तपुरका राजा जितशत्रु अपनी रानी सुकुमालिया के प्रेम में इतना पागल था कि वह राजकाज की ओर से उदासीन रहने लगा । यह देख मंत्रियों ने उसे निर्वासित कर राजकुमार को सिंहासन पर बैठा दिया । मंत्रिगण राजा के प्रति स्वामी भक्ति की भावना से कार्य करते थे । वे नीति तथा बुद्धि में कुशल होते थे । परामर्श तथा अन्य प्रकार के प्रशासनिक कार्यों में सहयोग देने के साथ-साथ न्यायकार्य को भी देखते थे ।
1
१. अर्थशास्त्र १ / ९ पृ० २२ महाभारत शान्तिपर्व ११८ /७ - १४ शुक्र २/५२-५४. व्यवहार भाष्य १ पृ० १३१
२. ज्ञाता धर्मकयांगसूत्र १ पृ० ८.
३. महाभारत शान्तिपर्व अध्याय ८३ / ५०-५२.
४. आ० चूर्णी पु० ५३४, निशीध चूर्णी ११, ३७६५.
५. समराइच्चकहा ४, पृ० २५७-५८, ५६, २७२.