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(११५) अनुसार तो राजा अपनी इच्छानुसार मंत्रियों की नियुक्ति नहीं कर सकता था । अपितु उनकी नियुक्ति करते समय धर्मशास्त्रों एवं अर्थशास्त्रों में उनके सम्बन्ध में निर्धारित नियमों को ध्यान में रखना परम आवश्यक था।
. जैन मान्यतानुसार राजा मुख्यमंत्री (प्रधान मंत्री) की नियुक्ति एक नहीं अनेक परीक्षाएँ लेकर भी किया करते थे। उज्जयिनी नगरी का राजा जिसके पास कि ४६६ मंत्री थे, लेकिन वह एक कुशाग्र बुद्धिशाली महामंत्री की खोज में थे। इसके लिए उन्होंने रोहक नामक व्यक्ति को प्रधान मंत्री पद के योग्य समझा । एक दिन अकस्मात राजा अपने साथियों से भटका हुआ एकाकी उस मार्ग पर आया, जिस मार्ग पर भरतनट का पुत्र रोहक बैठा हुआ था। जिसने कि अपनी बुद्धिमता से तथा बाल चंचलता से शुभ्ररेती पर कोटपूर्ण नगरी का नक्शा तैयार किया था। राजा यह देखकर बहुत प्रसन्न हुआ, और उसके चातुर्य को देखकर आश्चर्यचकित हुआ। राजा महल में आकर राज्यकार्य से निवृत्त होकर सोचने लगा कि मेरे चार सौ निन्यानवे मंत्री हैं, यदि ऐसा कुशाग्र बुद्धिशाली महामंत्री हो जाए तो मैं सुखपूर्वक राज्य चलाने में समर्थ हो सकूँगा। इस प्रकार सोच विचार कर राजा ने कुछ दिनों तक "रोहक" कितना बुद्धिशाली है इसके लिए १४ प्रकार से रोहक की परीक्षा ली। उसके पश्चात उसे मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त किया।
(III) मंत्रियों को योग्यता :. जैन पुराणों में उल्लिखित है कि राजा मंत्रियों की योग्यता एवं गणों की पूर्ण रूपेण परीक्षा करके हो मंत्री बनते थे। जैन पुराणों में अमात्य की योग्यता का उल्लेख करते हुए वर्णित है कि उसे निर्भीक, स्वक्रिया तथा परक्रिया का ज्ञाता, महाबलवान्, सर्वज्ञ एवं मन्त्रकोविद(मंत्रणा में निपुण)आदि गुणों से युक्त होना चाहिए। प्राचीन आचार्यों ने भी अमात्य के सम्बन्ध में उल्लेख किया है कि उसे ललित कलाओं में निपुण, अर्थशास्त्र का ज्ञाता,
१. नन्दीसूत्र : सम्पा० मुनि श्री फूलचन्द श्रमण, लुधियाना : आत्माराम जैन प्रकाशन
समिति, १९६६, पृ० १६७-१७३. . २. पदम पु.० ८/१६-१७, १५/१२६-३१. ६६/३, १०३/३; महा ५० ४/१६०