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________________ ( ११४) लोग विचार में पड़ गये कि जरूर यह कोई अतिशय बुद्धिवाला व्यक्ति लगता है । क्योंकि समय आने पर पुरुष के मुख का रंग ही उसके पराक्रम का द्योतक होता है। सभी पुरुषगण बोले अच्छा तो आप ही यह मुद्रिका निकाल लो और अर्धराज्य की लक्ष्मी, और ४६६ मंत्रियों की मुख्यता ग्रहण करो। यह सुनकर अभयकुमार बोला कि मैं तो एक परदेशी हूं। तब सभी पुरुष बोले के इसमें परदेशी की क्या बात है, आप यह कार्य कर सकते हैं । (इस वाक्य से विदित होता है कि मंत्री पद के लिए स्वदेशी होना आवश्यक नहीं था।) यह सुनकर अभयकुमार प्रसन्न हुआ और अँगूठी निकालने के लिए कुएँ के तट पर खड़े होकर आर्द्र गोमय पिंड उस कुएं में पड़ी हुई मुद्रिका पर डाला। इसके पश्चात् एक जलता हुआ घास का गठर उस पड़े हये गोमय पिंड पर फेंका जिससे कि मोमय पिंड तुरन्त सूख जाये । इसके कुछ समय पश्चात् अभयकुमार ने पानी की नहर बनवाकर उस सूखे कुएँ को जल से भरवा दिया। इससे क्या हुआ कि सूखा हुआ गोमय पिंड पानी के ऊपर तैरने लगा। यह देखकर अभय कुमार ने तुरंत ही उस गोमय पिंड को निकालकर उसमें से मुद्रिका को बाहर निकाल लिया। यह देखकर रक्षकों ने यह खबर तुरन्त ही राजा श्रोणिक को दे दी। राजा को बहुत ही आश्चर्य हुआ और अभय कुमार को अपने पास बुलवाया और आलिंगन किया। इसके पश्चात् राजा श्रेणिक ने अपनी बहिन सुसेना की पुत्री, आधा राज्य अभय कुमार को दिया तथा सर्व मंत्रियों के ऊपर मुख्यमंत्री बनाया।' (अभयकुमार राजा श्रेणिक का ही पुत्र था।) - राजा श्रेणिक का अभयकुमार मंत्री बहुत ही बुद्धिशाली तथा चार प्रकार की बुद्धि से युक्त था। महाभारत, रामायण, नीतिवाक्यामृत, अर्थशास्त्र, धर्म-शास्त्र आदि ग्रंथों में मंत्रियों की नियुक्ति का इस प्रकार उल्लेख नहीं मिलता है। इनके १. त्रि.श. पु. च. पृ० ११० २. शाताधर्मकथांगसूत्र १०८ (चार प्रकार की बुद्धि-१. औत्पत्तिकी, २. वनयिकी, ३. कार्मिकी, ४. परिणामिकी)
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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