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(१०५) शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। इसलिए राजा को न्यायपूर्वक धन ग्रहण करना चाहिए । राजा को व्यापार, वाणिज्य के लिए समुचित व्यवस्था भी करनी चाहिए।
प्राचीन काल की राजनीति के अनुसार लावारिस पुरुष की सम्पत्ति उसके मरने के बाद राजा को ही जाती थी। इस कारण मरने वाले की माता, स्त्री आदि आश्रितजन अनाथ और निराधार बन जाते थे। इस कर राजनीति से कई अबलाएँ जीवित रहने पर भी मृत्यु के समान हो जाती थीं। जले पर नमक छिड़कने वाली इस क्रूर प्रथा को कुमार भूपति ने अपने राज्य में एक आदेश निकाल कर बन्द करा दिया। ऐसा कार्य अशोक राजा ने भी किया था। - - (४) प्रशासकीय कर्तव्य :
देश की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए राजा के प्रशासकीय कर्तव्य भी महत्त्वपूर्ण हैं । इसके लिए राजा को राजकर्मचारियों की नियुक्ति करनी चाहिए, क्योंकि अकेला राजा शासन भार को नहीं संभाल सकता। इसके लिए उसे राजनीति के ज्ञाता कुशल मंत्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए। जैन आगमों में राजा के पाँच प्रधान पुरुषों का वर्णन किया गया है - राजा, युवराज, अमात्य, श्रेणी और पुरोहित । इनमें से युवराज और अमात्य को प्रमुख माना गया है। जैन मान्यतानुसार युवराज को बहत्तर कलाओं में प्रवीण होना चाहिए तथा युवराज बनने से पूर्व उसे राजनीतिक सभी कार्यों की शिक्षा देनी चाहिए।
मंत्रियों की नियुक्ति के लिए परीक्षाएँ ली जाती थीं। जो परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो जाते उन्हीं योग्य पुरुषों को मंत्री बनाया जाता था। राजा श्रोणिक का अभय कुमार नाम का मंत्री बहुत ही योग्य था। उसकी भी नियुक्ति से पूर्व राजा ने परीक्षा ली थी।
इसके अलावा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को ठीक प्रकार से बनाये रखने के लिए दूतों की नियुक्ति की जाती थी। इस प्रकार प्राचीन समय में जैन
१. कुमारपाल चरित्र संग्रह : सम्पा० आचार्य विज यमुनि, बम्बई : भारतीय विद्या
भवन १९५६, १० २३. २. नीतिवाक्यामृत में राजनीति पृ० ७६. ---------