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________________ (१०४) करो) ऐसी शिक्षा देते, उन्हें "माहज" अर्थात् "ब्राह्मण" कहा जाने लगा। भरत द्वारा प्रत्येक श्रावक के देवगुरु, धर्म अथवा ज्ञान, दर्शन,चारित्र रूपी रत्नत्रय की आराधना के कारण, कांकणीरत्न से तीन रेखाएँ की जाती थीं। समय पाकर ये ही तीन रेखाएँ यज्ञोपवीत के रूप में परिणित हो गई।' इस प्रकार भरत चक्रवर्ती द्वारा ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति हुई। सोमदेव सूरि यद्यपि जैन आचार्य थे किन्तु उन्होंने कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था को अपनाया है। वे लिखते हैं कि राजा को यमराज के समान कठोर होकर अपराधियों को दण्ड देते रहना चाहिए। इससे लोग अपनी-अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं कर सकते तथा राजा को धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती थी। (३) प्रार्थिक कर्तव्य : ___ आर्थिक दष्टि से प्रजा को सूखी-सम्पन्न बनाना भी राजा का कर्तव्य है । जीवन को सुखी एवं समृद्धिशाली बनाने के लिए अर्थ की परम आवश्यकता होती है। क्योंकि सभी कार्यों की सिद्धि अर्थ से ही होती है। राजा को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे प्रजा सरलतापूर्वक जीवनयापन कर सके। भगवान ऋषभदेव ने प्रजा को स्वावलम्बी बनाने के लिए असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य एवं शिल्प इन छह कर्मों का उपदेश दिया था। इसके अलावा कुम्भकार कर्म, पटकार कर्म, बर्धकी कर्म, चित्रकार कर्म, काश्यप कर्म, और नापित कर्म सिखाया। इन पाँच मूल कर्मों के बीसबीस भेदों से १०० प्रकार के कर्म उत्पन्न हुए । इस प्रकार भगवान ऋषभदेव ने सौ शिल्प कर्मों को सिखलाया । इसके अलावा राजा का कर्तव्य है कि वह प्रजा की आर्थिक स्थिति को ठीक रखने के लिए प्रजा पर अधिक कर नहीं लगाये । यदि कोई राजा प्रजा से अनुचित कर, या धन वसूल करता है, तो उस राजा का राज्य १. जैन धर्म का मौलिक इतिहास पृ० २८ २. नीतिवाक्यामृत में राजनीति पृ० ७५ ३. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति पृ० ११६, आ० चूर्णी पृ० १५१.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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