SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार विभिन्न राजकर्मचारियों की नियुक्ति कर राजा प्रशासन को श्रेष्ठ बनाने के प्रयत्न में लगे रहते। सैन्य व्यवस्था भी प्रशासन का ही अंग है । क्योंकि बल के आधार पर ही राज्य में शान्ति स्थापित हो सकती है। जैन मान्यतानुसार चतुरंगिणी सेना का राजा संगठन करता था, तथा उसके प्रशिक्षण की भी उचित व्यवस्था की जाती थी। सैन्य-शक्ति की प्रशंसा करते हुए आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि जिस प्रकार बटे हुए मृण-तन्तुओं से दिग्गज भी वशीभूत कर लिया जाता है, उसी प्रकार राजा भी सैन्य-शक्ति से शक्तिशाली शत्रु को भी परास्त कर देता है।' इसके अलावा अपराधी की खोज एवं अपराध निषेध के लिए तथा कुशल विदेशनीति निर्धारण के लिए साम, दाम, दण्ड, और भेद ये चार नीतियाँ भी अपनायी जाती थीं। जैन मान्यतानुसार ऋषभस्वामी ने सर्वप्रथम यह नीतियाँ चलाई थीं। (५) न्याय-सम्बन्धी कर्तव्य- . राज्य को सचारु रूप से चलाने के लिए न्याय की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। राजा का यह परम कर्त्तव्य है कि वह प्रजा का पक्षपात रहित होकर न्याय करे। इसके लिए राजा को दण्डनीति का ज्ञाता होना अत्यन्त आवश्यक है। भगवान ऋषभदेव ने चार प्रकार की दंड व्यवस्था का आयोजन किया था। (१) परिभाषण (२) मण्डली बंध (३) चारक बंध (४) छविच्छेद ऋषभस्वामी द्वारा स्थापित दण्डनीतियों से पूर्व तीन दण्डनीतियों का उल्लेख कुलकरों के समय का मिलता है । वे तीन दण्डनीतियाँ निम्न थीं : (१) हाकार (२) माकार (३) धिक्कार। १. नीतिवाक्यामृत में राजनीति पृ० ७६. २. आ० नि० गाथा० १६८
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy