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________________ ( १०१) से अपनी गायों की रक्षा करता है । जिस प्रकार अपनी गाय को अंगछेद आदि का दण्ड नहीं देता, उसी प्रकार से राजा को दण्ड देने में अपनी प्रजा के साथ न्यायोचित उदारता करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त ग्वाले के समान राजा अपनी प्रजा के रक्षार्थ, दवा देना, सेवा कराना, आजीविका प्रबन्ध करना, परीक्षा करके उच्चकुलीन पुत्रों को खरीदना और अपने राज्य में कृषकों को बोज आदि देकर खेती करानी चाहिए।' हरिवंश पुराण के अनुसार राजा को प्रजा के साथ पिता के समान व्यवहार करना चाहिए। राजा और प्रजा के सम्बन्ध में उक्त विचार जैनेंत्तर पुराणों में भी मिलते हैं। जैनेत्तर अग्निपुराण में उल्लिखित है कि जिस प्रकार गर्भवती स्त्री अपने उदरस्थ शिशु को हानि पहुंचाने की आशंका से अपनी इच्छाओं का दमन कर सुखों का परित्याग करती है, उसी प्रकार राजा को भी अपनी प्रजा के हित के सामने अपनी इच्छाओं का दमन कर सुखों का परित्याग करना चाहिए। राजा के कार्य : समाज में राजा की आवश्यकता फैली हई अराजकता का अंत करने, प्रजा का यथोचित पालन करने तथा देश में शान्ति एवं सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए हुई। इसलिए राजा का कर्तव्य है कि वह देश में शान्ति एवं सुव्यवस्था बनाये रखे। जैन मान्यतानुसार बताया गया है कि राजा को धर्मपूर्वक प्रजा का संरक्षण करना चाहिए । जो राजा धर्म-पूर्वक राज्य करता है वह राजपद पर स्थायी रूप से रह सकता है । जो राजा अधर्माचारी होता है, वह शीघ्र ही पदच्युत कर दिया जाता है । तथा ऐसा राजा मर कर नरक में जाता है । अर्थात् जिसमें धर्म होता है, उसी को राजा कहते हैं । महाभारत (शान्तिपर्व) के अनुसार राजा धर्म के लिए १. महा पु० ४२/१३६-१९८ २. प्रजानांजनाकाभास्ते ' । हरिवंश पु० ७/१७६ ३. रामायण २/२/२८-४७, महाभारत शान्तिपर्व १३६/१०४-१०५. ४. नित्यं राजा तथा भाव्यं गमिणी सहधर्मिणी। यथा स्वं सुखमुत्सज्य गर्भस्य सुखभावहेत ॥ अग्निपुराण २२२/८,
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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