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(६५) राजेन्द्र', राजर्षि', अधिराट्, सम्राट, आदि उपाधियाँ धारण करते थे।
जैनेत्तर पुराणों में भी उपर्युक्त प्रकार की राजाओं की उपाधियाँ प्राप्त होती थीं, जो उनकी शक्ति की द्योतक थीं। महाभारत में राजाओं के लिए राजन्, राजेन्द्र, राज्ञ, नृप, नृपति, नराधिप, नरेन्द्र, नरेश्वर, मनुष्येन्द्र, जनाधिप, जनेश्वर, पार्थिव, पृथ्वीश्वर, पृथ्वीपाल, पृथ्वीपति, भूमिप, क्षितिभुज, विशापति, लोकनाथ आदि उपावियाँ वर्णित हैं। कालिदास ने अपने ग्रन्थ में भगवान्, प्रभु, जगदेशनाथ, ईश्वर, ईश, मनुष्येश्वर, प्रजेश्वर, वसुधाधिप, राजा, भूपति, अर्थपति, प्रियदर्शन, भुवोभुर्त, महीक्षित, विशांपति, प्रजाधिप, मध्यमलोकपाल, गोप, महीपाल, क्षितीश, क्षितिप, नरलोकपाल, अगाधसत्व, दण्डधर, पृथ्वीपाल, भट्टारक, आदि उपाधियाँ राजा के लिये प्रयुक्त की गई हैं।
राजा के प्रकार :
जैन पुराणों में राजा के प्रकारों का भी उल्लेख मिलता है। महापुराण में चमर के आधार पर राजाओं का विभाजन हुआ है । जिनेन्द्र देव के पास ६४ चमर थे। ये ही चमर चक्रवर्ती राजा के पास आधे हो जाते हैं। इसी आधार पर चक्रवर्ती बत्तीस, अर्ध-चक्रवर्ती सोलह, मण्डलेश्वर आठ, अर्द्ध मण्डलेश्वर चार, महाराज दो, और राजा एक चमर बाँधते थे। महापुराण के अनुसार भरत प्रथम चक्रवर्ती थे और उन्हीं से ही चक्रवर्ती परम्परा प्रारम्भ हुई थी। भरत के नाम पर ही भारतवर्ष
१. महा पु० ३२/६८ २. वही ३४/३४ ३. वही ३७/२० ४. वही ३७/२० ५. प्रेमकुमारी दीक्षित : महाभारत में राजव्यवस्था, लखनऊ, १९७०, पृ० २६ ६. कालिदास का भारत भाग १ पृ० १३०-१३१ ७. महा पु० २३/६० ८. वही