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(१४)श्रष्ठी (नगर-सेठ) यह अठारह प्रकार की प्रजा का रक्षक कहलाता था। राजा द्वारा मान्य होने के कारण उसका मस्तक देवमुद्रा से विभूषित, सुवर्णपट्ट से शोभित रहता था। यह अमात्य, सेनापति, पुरोहित, सहित राजा के साथ रहता था ।' . __उपर्युक्त पुरुषों के अलावा ग्राम महत्तर, राष्ट्रमहत्तर, (राठौड़), गणनायक, दण्डनायक, कोट्टपाल, संधिपाल, पीठमर्द, महामात्र (महावत), यानशलिक, विदूषक, दूत, चेट, वार्तानिवेदक, किंकर, कर्मकर, असिग्राही, धनुग्राही, कोतग्राही, छत्रग्राही, चामरग्राही, वीणाग्राही, भाण्ड, अभ्यंग, लगाने वाले, उबटन लगाने वाले, स्नान कराने वाले, वेश-भूषा से मंडित करने वाले, पैर दबाने वाले आदि कितने ही कर्मचारी राजा की सेवा में उपस्थित रहते थे। राजा की उपाधियाँ :
जैन पुराणों का अवलोकन करने से राजा की उपाधियाँ ज्ञात होती हैं कि राजा को प्राचीन समय में किन-किन नामों से जाना जाता था। उस समय राजगण अपनी शक्ति के अनुसार चक्रवर्ती', अर्धचक्रवर्ती राजराजेश्वर, महामण्डलेश्वर, मण्डलेश्वर, अर्धमण्डलेश्वर, महीपाल", नप, राजा", भूप", महामण्डलिक, अधिराज', राजराज",
१. महा पु० ५/७. २. हरिवंश पु० ५/२५२, महा पु० ४५/५३. ३. महा पु० २३/६० - ४. हरिवंश पु० ११/२३ ५. महा पु० २३/६० ६. वही २३/६० ७. वही २३/६० ५. . वही ४१/९७ ६, वही ४/१३६, हरिवंश पु० १६/१६ १०. महा पु० ४/७०, हरिवंश पु० १९/१६ ११. वही ५२/२७, वही १६/१६, पद्म पु० ११/५८ १२. महा पु० १६/२५७ १३. वही १६/२६२ १४. वही ३१/१४४