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________________ (६०) ज्येष्ठ पुत्र को ही राजा बनाना श्रेयष्कर है।' जैनागम पुराणों के अनुसार भी राजपूत्र को ही उत्तराधिकारी बनाया जाता था । यदि किसी राजा के पुत्र नहीं होता और दुर्भाग्यवश पुत्रविहीन राजा की मृत्यु हो जाती उस समय उत्तराधिकारी का प्रश्न बहुत ही जटिल हो जाता था। ऐसी परिस्थिति में किसको राजा बनाया जाय, कोई उपाय नहीं होने पर, मंत्रियों की सलाह से धर्मश्रवण आदि के बहाने साधुओं को राजप्रासाद में आमन्त्रित कर उनके द्वारा सन्तानोत्पत्ति करायी जाती थी। दूसरा यह उपाय भी किया जाता था, जब पुत्रविहीन राजा की मृत्यु हो जाती, तब नगर में एक दिव्य घोड़ा घुमाया जाता था, और वह घोड़ा जिसके पास जाकर रुक जाता उसे ही राजपद पर अभिषिक्त कर दिया जाता था। इसके अलावा उत्तराधिकारी की खोज में पाँच दिव्य पदार्थ भी घमाये जाते थे। जिसमें हाथी, घोड़ा, कलश, चमर ओर दण्ड होते थे। जब किसी पुत्रविहीन राजा की मृत्यु होती तब उत्तराधिकारी की खोज में इनको घुमाया जाता था। यथा -- पुत्रविहीन वेन्यातट के राजा की मत्यु हो जाने पर मंत्रियों को चिन्ता हुई। उस समय वे हाथी, घोड़ा, कलश, चमर, और दण्ड इन पाँच दिव्य पदार्थों को लेकर किसी योग्य पुरुष की खोज में निकले थे। कुछ दूर जाने पर एक वृक्ष की शाखा के नीचे बैठे हुए मूलदेव के पास जाकर हाथी ने चिंधाड़ मारी, घोड़ा हिनहिनाने लगा, कलश में भरे हुए जल से उसका अभिषेक करने लगा, चमर सिर पर ढलने लगा, और दण्ड उसके पास आकर ठहर गया। यह देखकर राज्य कर्मचारी जय-जयकार करने लगे, और मूलदेव को हाथी पर बैठाकर धूम-धाम से नगर में प्रवेश कराया तथा मंत्रियों और सामंतों ने उसे राजा घोषित किया। १. अर्थशास्त्र १/७ पु० ५३. २. बृहत्कल्पभाष्य : टीका : मलयगिरि और क्षेमकीति : पुष्पविजय, भावनगर आत्मानंद जैन सभा १९३३-३८, ४/४६५८ ३. उत्तराध्ययन टीका, अ० ३. ४. उत्तराध्ययन टीका अ० ३.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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