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________________ ( ८ ) पर आरूढ़ हुआ । कुछ समय पश्चात् कुंडरीक संयम पालन में अपने आपको असमर्थ समझ दीक्षा छोड़कर वापिस लौट आया। यह देखकर उसके भाई पुंडरीक ने उसे अपने पद पर बिठाकर स्वयं श्रमण धर्म में दीक्षित हो गया । ' कभी ऐसा भी होता था कि राजा युवराज का राज्याभिषेक कर स्वयं संसार त्याग की इच्छा व्यक्त करता, लेकिन युवराज भी राजा बनने से इन्कार कर देता और वह भी पिता के साथ दीक्षा ग्रहण कर लेता था । जैसे - चम्पानगरी में शाल नाम का राजा था । उसका महाशाल नाम का पुत्र था । जब शाल ने महाशाल को राज - सिंहासन पर बैठाकर स्वयं ने दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की तब महाशाल ने राजपद लेने से इन्कार कर दिया । और अपने पिता के साथ वह भी दीक्षित हो गया । " 1 जब राजा और राजपुत्र दोनों ही दीक्षा ग्रहण कर लेते और उनके दूसरा पुत्र नहीं होता उस समय राजा की बहिन और उसका पुत्र राजपद के अधिकारी होते थे । उपर्युक्त कथा में शाल और महाशाल के दीक्षा ग्रहण कर लेने पर उनकी बहिन का पुत्र गग्गलि को राज - सिंहासन पर बैठाया गया था । जैन आगम पुराणों के अनुसार राज्यशासन में स्त्रियों बहुत कम भाग लेती थीं, क्योंकि उस समय स्त्रियाँ शासन कार्य चलातीं तो पुरुषों की निंदा होती थी । राजा के उत्तराधिकारी का प्रश्न : - प्राचीन काल में अधिकतर राजपद, वंशपरम्परागत होता था । महाभारत तथा रामायण में ज्येष्ठ पुत्र को ही राजपद का भागी बताया गया था । मनु ने भी लिखा है कि ज्येष्ठ पुत्र अपने पिता से सब कुछ प्राप्त कर सकता है । कौटिल्य ने भी लिखा है कि आपत्ति काल को छोड़कर १. ज्ञाताधर्मकयांग सूत्र अ० १६ पृ० ५७६. २. उत्तराध्ययन टीका : शन्तिसूरि, बम्बई १९१६, अ० १०. ३. उत्तराध्ययन टीका : शान्तिसूरि, बम्बई १९१६, अ० १० ४. मनुस्मृति ९/१०६
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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