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राजा के प्रधान पुरुष :
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जैन पौराणिक ग्रंथों में राजा के प्रधान पुरुषों का वर्णन किया गया है । जैन ग्रन्थों में राजा के प्रधान पुरुषों में राजा, युवराज, अमात्य, श्रेष्ठ और पुरोहित आते हैं । राजा को सर्वेसर्वा माना गया है। राजा के पश्चात् दूसरा नम्बर युवराज का आता है। यह पहले ही कहा जा चुका है कि राजा की मृत्यु के पश्चात् युवराज को राजपद पर अभिषिक्त किया जाता था । वह राजा का पुत्र, भाई अथवा अन्य कोई सगा सम्बन्धी हो सकता है । युवराज अणिमा, महिमा आदि अठारह प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त, बहत्तर कलाओं, अठारह देशी भाषाओं, गीत, नृत्य, तथा हस्ति- युद्ध, अश्वयुद्ध, मुष्ठियुद्ध, बाहुयुद्ध, लतायुद्ध, रथ युद्ध, धनुर्वेध आदि में वह निपुण होता था। युवराज का यह कर्त्तव्य होता था कि वह अपने समस्त कार्यों को करने के पश्चात् सभामण्डप में पहुंचकर राजकाज की देखभाल करे । राजकुमार को युद्धनीति की तथा सभी प्रकार की प्रारम्भ से ही शिक्षा दी जाती थी । जिससे कि वह समय पर अपने राजा की की मदद कर सकता था । कभी पड़ौसी राजा जब राज्य पर आक्रमण कर देते या उपद्रव फैला देते, उस समय युवराज पूर्ण रूप से राजा की मदद करता था तथा फैले हुए उपद्रवों को शान्त करता था । इसके अलावा और भी कार्यों में युवराज राजा का हाथ बँटाता था ।
युवराज प्रायः राजा के पुत्र को ही बनाया जाता था । अगर किसी राजा के पुत्र नहीं होता या फिर युवराज पद के योग्य नहीं होता तब ऐसी परिस्थिति में राजा के भाई या अन्य सगे-सम्बन्धियों को युवराज बनाया
जाता था ।
राज्याधिष्ठान में अमात्य अथवा मंत्री का पद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता था । वह अपने जनपद, राजा और नगर के विषय में सदा चिन्तित रहता था । व्यवहार तथा नीति में भी चतुर होता था । जैन मान्यतानुसार मंत्रियों में प्रथम राजा श्रेणिक के पुत्र अभय कुमार का नाम आता है । अभयकुमार मैत्री साम, दाम, दण्ड और भेद में कुशल, नीति - शास्त्र का पण्डित, गवेषणा आदि में चतुर, अर्थशास्त्र में, विशारद तभी औत्पत्तिकी,