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प्रमुख जैन पुराणों में निहित राजनीतिक सामग्री पर अनुसंधान करके उसे एक सूत्र में निबद्ध कर प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में भारतीय राजनीति: जैन पुराण' साहित्य संदर्भ में' का दिग्दर्शन किया है।
जैन पुराणों की रचना संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में हुई है। वैदिक परम्परा के अष्टादश पुराणों की तरह यहां पुराणों की संख्या सीमित नहीं है । जैन पुराणों को सर्वत्र पुराण नाम से अभिहित भी नहीं किया गया है। कतिपय रचनाकारों ने उन्हें चरित्र की संज्ञा दी है। परन्तु वास्तव में वह इस कोटि के अन्तर्गत ही आते हैं । जैन पुराणों की सूची ग्रन्थ में प्रेषित की गई है।
मैंने अपने अनुसंधान की उपलब्धियों को प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के अष्ट अध्यायों में निम्न रीति से संयोजित किया है :
प्रथम अध्याय में भारत में प्राचीन राजनीति शास्त्र की अध्ययन परम्परा, द्वितीय अध्याय में जैन पुराण-साहित्य का परिचय, तृतीय अध्याय में जैन पुराण साहित्य में राजनीति, चतुर्थ अध्याय में राज्य एवं राजा, पंचम अध्याय में शासन-व्यवस्था, षष्ठ अध्याय में न्यायव्यवस्था, सप्तम अध्याय में नगरादि व्यवस्था, अष्टम अध्याय में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का वर्णन किया गया है।
उपसंहार में अत्यन्त संक्षेप में शोध-प्रबन्ध के निष्कर्ष प्रस्तुत किये गये हैं।
अन्त में संदर्भ-ग्रंथ सूचि (तालिका) में उन प्रमुख ग्रन्थों की तालिका दी गयी है जिनका उपयोग शोध-प्रबन्ध की तैयारी में विशेष रूप से किया गया है। कृतज्ञता ज्ञापन :
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध की आप प्रेरिका गुरुवर्या शासन ज्योति, शतावधानी पूज्य मनोहर श्री जी महाराज साहब एवं विदुषीवर्या पूज्य मुक्ति प्रभा श्री जी महाराज साहब हैं, जो इस ग्रन्थ की समाप्ति तक प्रेरक बनी रहीं। पूज्या प्रधान पद विभूषिता अविचल श्री जी म. सा. के आशीर्वाद एवं गुरु भगिनियों के सहयोग तथा पूज्या सुरेखा श्री जी महाराज साहब के विशेष सहयोग एवं सद् प्रयत्न के फलस्वरूप यह कार्य पूर्णता की ओर अग्रसर हुआ है।