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नगर
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सरलपुर- श्रग्गाहार (२५८. २६) - हस्तिनापुर के पास ही सरलपुर नाम का ब्राह्मणों का अग्गाहार था । वहाँ का स्वयंभूदेव ब्राह्मण आजीविका की खोज में चंपा नगरी तक चला गया था ( २५९.१९) ।
साकेत (२२४.१६) - साकेत का जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में अनेक बार उल्लेख हुआ है । यह कोसल का एक प्रसिद्ध नगर था । साकेत तथा अयोध्या को प्रायः विद्वानों ने एक ही नगर के दो नाम माना है, किन्तु रिजडेबिडस् ने इन दोनों को लन्दन तथा वेस्टविस्टर के समान समीपवर्ती नगर माना है । साकेत का जनपद के रूप में और अयोध्या का नगरी के रूप में प्राचीन साहित्य में उल्लेख भी यह प्रमाणित करता है कि साकेत जनपद में अयोध्या अवश्य सम्मिलित थी पर अयोध्या साकेत का पर्याय नहीं है । कुव० में भी अयोध्या और साकेत का उल्लेख अलग-अलग हुआ है, जिससे इन दोनों की स्वतन्त्र स्थिति स्पष्ट होती है ।
श्रावस्ती (२३०.१६, २५०.१६ ) - भगवान् महावीर का विहार काकन्दी श्रावस्ती में हुआ ( २३०.१६) । वहाँ का राजा श्रावस्ती से निकल कर उनकी वन्दना के लिए गया था ( २३०.१८) तथा श्रावस्ती की कन्या ऋषभपुर के वैरीगुप्त को विवाही गयी थी ( २५०.१६) । प्राचीन ग्रन्थों में इसके लिए सावत्थी, चन्द्रपुरी तथा चन्द्रकापुरी नाम भी आते हैं । इसके श्रावस्ती नाम पड़ने के कई कारण हैं । डा० राय ने श्रावस्ती के इतिहास पर विशद प्रकाश डाला है । इस नगर की पहचान वर्तमान उ० प्र० के वहराइच जिले में राप्ती नदी के तट पर स्थित आधुनिक सहेट- महेट से की जाती है । वहाँ प्राचीन श्रावस्ती के खण्डहर
विस्तृत प्रदेश में फैले हुए उपलब्ध होते हैं ।
श्रीतुंगा (१०७.१६) - श्रीतुंगा दक्षिण समुद्र के किनारे पर बसी हुई नगरी थी । इसका अपरनाम जयतुंगा भी था (१०९.२६) ।
सोपारक (६५.२० ) - लोभदेव व्यापार के लिए तक्षशिला से सोपारक गया था, जहाँ स्थानीय व्यापार मंडली ने उसका हार्दिक स्वागत किया था (६५.२०,२५) । शूर्पारक (सोपारा) की महत्ता वाणिज्य के क्षेत्र में प्राचीन समय से थी । यह पश्चिमी समुद्र तट का विशिष्ट बन्दरगाह माना जाता था । जातकों में इसे सौवीर की राजधानी कहा गया है तथा कच्छ की खाड़ी के दाहिने तट पर स्थित बताया गया है ।" आठवीं सदी में भी सोपारक व्यापार
१. अत्थि नाइदूरे सरलपुरं णाम बंभणाणं अग्गाहा रं
२.
रा० - बु० ई०, पृ० ३९.
३.
४.
५.
- २५८.२६.
रा० प्रा० न०, पृ० ११४- १२१.
अथ दाहिण - मय रहर - वेलालग्गा सिरितुंगा णाम णयरी - कु० १०७.१६. जातक, २-४७०