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ऐतिहासिक-सन्दर्भ
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ही समय के होने के कारण परस्पर परिचित भी हो सकते हैं तथा इन दोनों के ग्रन्थों में कुछ पारस्परिक प्रभाव खोजे जा सकते हैं ।
जटिल एवं वरांगचरित - ६-७वीं शदी का वरांगचरित एक प्रसिद्ध धर्मकथा ग्रन्थ है । इसके रचयिता जटासिंहनन्दि थे, जो जटिल अथवा जटाचार्य के नाम से प्रसिद्ध थे । इनका समय सातवीं शताब्दो का अन्तिम चरण निर्धारित किया गया है । " वरांगचरित में वरांग नामक राजकुमार की साहसिक यात्राओं एवं धर्माचरण का वर्णन है ।
हरिभद्रसूरि और समरमियंककथा - उद्योतनसूरि ने अपने गुरु का स्मरण करते हुए उनकी समराइच्चकहा का भी उल्लेख किया है । समयमियंक - कहा समराइच्चकहा का अपरनाम है । इस विषय पर डा० उपाध्ये ने पर्याप्त प्रकाश डाला है । ३ इस कथा में गुणसेन और अग्निशर्मा के नौ भवों की जीवनगाथा वर्णित है । प्राकृतसाहित्य की यह अनुपम कृति है ।
श्रभिमान, पराक्रम साहसांक एवं विणए - इन कवियों के अतिरिक्त ग्रन्थ ( ४-३ ) में अन्य महाकवियों का भी उल्लेख किया गया है जो गौरव गाथा की कथा का चिंतन-मनन और सृजन करते थे :
अण्णे वि महा-कइणो गरुय - कहा- बंध- चितिय- मईओ । अभिमाण-पराक्कम - साहसंक - विणए विइंतेमि ॥४-३
इस पद्य के द्वितीयार्थ में अभिमान, पराक्रम और साहसांक के नाम स्पष्ट । अन्त में शायद किसी 'विण' या 'विणए', 'वृण' का भी उल्लेख माना जा सकता है । ये सभी कवियों के उपनाम रहे होंगे, ऐसा प्रतीत होता है । प्रथम दो और अन्तिम कवियों के सम्बन्ध में और कोई जानकारी प्राप्त नहीं है, पर साहसांक को डा० बुद्धप्रकाश ने सम्राट् चन्द्रगुप्त का साहित्यिक उपनाम माना है । साहसांक के सदृश विरहांक उपाधि भी कवियों द्वारा धारण की जाती थी । उद्योतन के गुरु आचार्य हरिभद्रसूरि 'विरहांक' के नाम से भी प्रसिद्ध हैं । अतः उपर्युक्त उपाधियों वाले कवियों का अस्तित्व भी रहा होगा ।
उद्योतनसूरि द्वारा उपर्युक्त कवियों एवं उनकी रचनाओं को स्मरण करने से यह स्पष्ट है कि उन्होंने अपने से पूर्व की साहित्यिक परम्परा का गहन अध्ययन अवश्य किया होगा । इस महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ से अभी तक अज्ञात कवियों एवं उनकी रचनाओं को खोजने का प्रयत्न भी किया जा सकता है ।
'वरांगचरित' डा० उपाध्ये, माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, १९३८, पृ० ६२.
वही, ६५-६६.
भारतीय विद्या, ७, पृ० २३-४, बम्बई, १९४७.
'समुद्रगुप्त एण्ड चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य एज संस्कृत पोयट्स्'
१.
२.
३.
४.
विश्वेश्वरानन्द जर्नल, मार्च १९७१.