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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन अन्य फुटकर ग्रन्थ
उपर्युक्त कवियों एवं उनकी रचनाओं के अतिरिक्त कुवलयमालाकहा में यत्र-तत्र अन्य फुटकर ग्रन्थों एवं लेखकों का भी उल्लेख हुआ है। यथा-भरत
और उनका भरतशास्त्र (१६.२३), बिसाखिल-युद्धशास्त्रप्रणेता (१६.२३, १२३.२४), बंगालऋषि और बंगाल-जातक (२०.२,३)-राशिफल एवं ज्योतिष का ग्रन्थ ।' मनु एवं मनुस्मृति तथा मार्कण्डेय एवं सम्भवतः उनका पुराण । चाणक्य एवं उनका चाणक्यशास्त्र (सम्भवतः अर्थशास्त्र)-(५६-२८)।
अन्य प्रसंगों में निम्न ग्रन्थों का उल्लेख कुवलयमाला में हुआ है-योनिपाहड (३४.२४), गीता (४८.१७, ८२.२३) गायत्री (११२.२२), कामशास्त्र (७८.६), समुद्रशास्त्र (१२६.३), तन्त्राख्यान (२३६.३०), नीतिशास्त्र (२५५.२६), धम्मिल्लहिण्डी (२८१.११), वसुदेवहिण्डी एवं सुपुरिसचरिय (२८२.८)। इनके अतिरिक्त जैन मुनियों के अध्ययन के प्रसंग में आचारांग आदि ११ अंग शास्त्रों के नाम भी उल्लिखित हैं (३४.११, १८)। 'विपाकसूत्र' का उल्लेख नहीं है, जो स्वयं कवि अथवा लिपिकार की असावधानी से छूट गया है। प्राचीन ग्रन्थों के उद्धृत अंश
कुवलयमाला कहा में प्राचीन ग्रन्थों के नामों का ही उल्लेख नहीं है, अपितु कई प्राचीन ग्रन्थों के महत्त्वपूर्ण अंश भी उद्धृत किये गये हैं। उनका प्राचीन ग्रन्थों से मिलान करना समय एवं अध्ययन सापेक्ष है। जिस प्रकार डा० उपाध्ये ने कुवलयमाला के संस्कृत भाषा के उद्धरणों को एकत्र कर उनके स्रोत खोजने का प्रयत्न किया है, वैसे ही विभिन्न प्राकृतों के उद्धरण, अपभ्रश के उद्धरण एवं शकुन, नक्षत्रविद्या व सामुद्रिकविद्या के उद्धरणों के मूल स्रोतों का भी पता लगाया जा सकता है । इससे उद्योतनसूरि के विस्तृत ज्ञान का तो पता चलेगा ही, कई नये ग्रन्थ भी प्रकाश में आ सकते हैं। ग्रन्थ में उपलब्ध कुछ उद्धरण एवं सूक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं :नीति-वाक्य
१. जिन कार्यों को व्यक्ति हृदय से नहीं करता वे नष्ट हो जाते हैं।
हृदय से कार्य करने पर बड़े-बड़े कार्यों को सिद्ध किया जा सकता
है (१३.२०)। १. दृष्टव्य-डा० उपाध्ये—'वकालकाचार्य-ए फार्गाटन अथारटी आन्, अस्ट्रालाजी'
-पी० के० गुणे स्मृतिग्रन्थ, पृ० २०३-४, पूना, १९६०, २. द्रष्टव्य, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, प्रस्तावना, पृ० ३४. ३. 'ब्रह्मविद्या' जुवलीसंस्करण, भाग १-४, १९६१.