________________
ग्रन्थ की कथावस्तु एवं उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि यात्रा-मार्गों की उन्हें जानकारी थी। सामाजिक-संरचना, रहन-सहन एवं तत्कालीन रीति-व्यवहारों को उन्होंने निकट से देखा था। देशाटन द्वारा न केवल उन्होंने उत्तर-दक्षिण भारत के शिक्षाकेन्द्रों की गतिविधियों का ज्ञान प्राप्त किया था, अपितु समस्त भाषाओं की बारीकियों को भी हृदयंगम किया था । फलस्वरूप कला, स्थापत्य, शिल्प एवं दार्शनिक-चिंतन को धाराओं को वे सूक्ष्मता से अपने ग्रन्थ में संजो सके हैं। प्रतीत होता है कि उद्द्योतनसूरि के मन में अपने इस ग्रन्थ द्वारा वस्तु-जगत् की सम्पूर्ण जानकारी देने को प्रबल आकांक्षा थी। प्रस्तुत ग्रन्थ के अगले अध्यायों से यह बात अधिक स्पष्ट हो सकेगी।