SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिच्छेद चार ऐतिहासिक-सन्दर्भ उद्द्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में दो प्रकार के ऐतिहासिक सन्दर्भ प्रस्तुत किये हैं : १. पूर्व आचार्यों एवं कृतियों का उल्लेख तथा २. ऐतिहासिक राजाओं के सन्दर्भ । इन दोनों प्रकार के सन्दर्भो का अध्ययन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । एक ओर इनसे जहाँ उद्योतन के विस्तृत ज्ञान का पता चलता है, वहाँ दूसरी ओर कुछ ऐतिहासिक गुत्थियां भी सुलझती हैं। पूर्व आचार्यों के स्मरण की परम्परा अपने से पूर्ववर्ती कवियों और लेखकों को स्मरण करने की यह पद्धति गद्य-कथानों का आवश्यक अंग समझी जाने लगी थी। कालिदास, सुबन्धु एवं बाण ने अपनी रचनाओं में पूर्ववर्ती कवियों को नमस्कार या स्मरण किया है। बाण के बाद के लेखकों में तो यह प्रवृत्ति और अधिक बढ़ी हुई मिलती है। धनपाल ने तिलकमंजरी में तथा पुष्पदन्त ने महापुराण की उत्थानिका में अनेक पूर्ववर्ती कवियों को स्मरण किया है। प्राकृत और अपभ्रंश के प्रायः सभी कवियों ने इस परिपाटी का अनुसरण किया है। पूर्व के कवियों की रचनाओं के परिप्रेक्ष्य में लेखक अपनी रचना की नवीनता स्पष्ट कर सके, इसके लिए उनको स्मरण करना आवश्यक रहा होगा। उद्योतनसूरि के कवि-स्मरण-प्रसंग द्वारा यह बात स्पष्ट हो जाती है। उनका कहना है कि यद्यपि पूर्वकवियों ने जगत् में शायद ही कोई ऐसी बात हो जो न कही हो, किन्तु वस्तुओं (के नानात्मक रूबों) को अनन्त अर्थों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है, इसलिए मैं कथा को रचना कर रहा हूँ :-- एयाण कहाबंधे तं णत्थि जयम्मि जं कह वि चुक्कं । तहवि अणन्तो अत्थो कोरइ एसो कहा-बंधो॥४.४॥ १. प्रेमी, नाथूराम-जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३२५.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy