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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन आलय (२४९.१७), चुपाल, वेदिका (२४६.१७), घर-फलिह (४७.१०), कोट्ठय कोणाओ (४७-१५), घरोवरिकुट्टिम (२३२-२९), द्वारसंघात (९७-४), द्वारदेश (२५.८), द्वार-मूल (१९९.२६), मणिकुट्टिम (३१.२४), मणिमयभित्ति (७.१५), हर्म्यतल (१६६.१५), प्रासादतल (१७३.३१), प्रासाद (९१.६), प्रासादशिखर (१६३.१९), उल्लोक छत्त (१७०.२२) । इनके अतिरिक्त विनीता नगरी (७.१५), कौसाम्बी नगरी (३१.१९) एवं समवसरण वर्णन (९६.२९) स्थापत्य की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। यन्त्रशिल्प :
___ कुवलयमालाकहा में तीन प्रकार के यान्त्रिक उपादानों का इन प्रसंगों में उल्लेख है। वासभवन की सज्जा में प्रियतम के आने की प्रतीक्षा के सयय में यन्त्रशकुनों को मधुर-संलाप में लगा दिया गया।' वापी में स्नान करते हुए किसी प्रोढ़ा ने लज्जा को त्यागकर जलयन्त्र की धार को अपने प्रियतम की दोनों आँखों पर कर दिया और लपककर अपने प्रेमी का मुख चम लिया।२ यन्त्रजलघर से आकाश में मायामेघों द्वारा ठगे गये भवनों के हंस पावस ऋतु मानकर मानसरोवर को नहीं जाते थे। उज्जयिनी नगरी के जलयन्त्रों से मेघों की गर्जना होने से भवनों के मोर हर्षित होकर नाचने लगते थे (५०.११)। उद्योतन ने यन्त्रशिल्प के सम्बन्ध में कोई विवरण नहीं दिया है । अन्य सन्दर्भो के आधार पर उनके इन तीन उल्लेखों को स्पष्ट किया जा सकता है ।
यन्त्रजलघर-विनीता नगरी के यन्त्रधारागृह में इस यन्त्रजलघर की रचना की गयी थी। यन्त्रधारागृह में मायामेघ या यन्त्रजलघर का निर्माण प्राचीन वास्तुकला का एक अभिन्न अंग था। महाकवि वाण ने कादम्बरी में मायामेव का सुन्दर दृश्य प्रस्तुत किया है-बलाकाओं की पंक्तियों के मुखों से निकलती हुई सहस्र धाराएँ वनावटी मेघमाला का दृश्य उपस्थित कर रही थीं। जिनसेन ने आदिपुराण (८.२८) में धारागृह में गिरती हुई धाराओं से घनागम का दृश्य उपस्थित किया है-धारागहेसु निपतद्धाराबद्ध घनागमे । सोमदेव ने यन्त्रजलघर के झरने से स्थलकमिलिनी की क्यारी सींचने का उल्लेख किया है ।" भोज ने शाही घरानों के लिए जिस प्रवर्षण नामक वारिगृह का
१. संजोएसु महुर-पलावे जंत-सउणए, ८३.६. २. जल-जंत-णीर-भरियं लोयण-जुयलं पियस्स काऊण ।
चुंबइ दइयस्स मुहं लज्जा-पोढत्तणुप्फालं ॥ ९४.३१. ३. जल-जंत-जलहरोत्थय-णहंगणाहोय-वेलविज्जंता ।
परमत्थ-पाउसे वि हु ण माणसं जंति घर-हंसा ।। ८.१०. ४. स्फटिकबलाकावलीवान्तवारिधारा लिखितेन्द्रायुधाः संचार्य माणाः मायामेघमालाः।
द्रष्टव्य, अ०-का० सां० अ०, पृ० २१५. ५. पर्यन्तयन्त्रजलधरवर्षाभिषिच्यमानस्थलकमलिनीकेदारम् । यश०, सं० पू० ५३०.