________________
भवन-स्थापत्य मंजिल तथा गुजराती में मालो कहा जाता है। सम्भवतः यह छोटी बालकनी के सदश रही होगी। वैदिका वातपान का उल्लेख शुंगकाल और कुषाणकाल के स्थापत्य में मिलता है। सम्भवतः रोशनदान के लिए यह पुराना नाम ८वीं सदी में भी प्रचलित रहा हो । बालकनी के लिए कुवलयमाला कहा में निज्जूहय (२५.८) तथा मत्तवारण (२३२.२७) शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। सम्भवतः इनके आकार में कुछ भेद होने से इन्हें भिन्न नाम प्रदान किये गये हैं।
___ कपोतपाली-कपोतपाली का उदद्योतन ने केवल एक बार उल्लेख किया है-अण्णा कओलवालीसु (२५.९)। यहाँ उद्द्योतन ने प्राचीन भारतीय स्थापत्य की उस पारावतमाला की ओर संकेत किया है, जो भवनों के शिखरों पर बनायी जाने लगी थी। अनेक अलंकरणों के साथ भवनों के शिखरों पर पत्थरों के कबूतर भी शोभा के लिए बना दिये जाते थे, जिन्हें कापोतपाली> कपोताली>केवाली कहा जाता था।२ गुप्तकालीन ‘पादताडितकम्' नामक ग्रन्थ में वारवनिताओं के भवनों के वर्णन में कपोतपाली तथा कादम्बरी में शिखरेषुपारावतमाला (पृ० २६) का उल्लेख हुआ है। कुवलयमाला के वर्णन में नगर की युवतियाँ सम्भवतः शिखरों पर चढ़ कर कपोतपाली के समीप से कुमार कुवलयचन्द्र को देख रही थीं।
सोपानपंक्ति-उद्द्योतनसूरि ने धवलगृह का जितनी बार उल्लेख किया है सर्वत्र उसे ऊपरीतल पर स्थित कहा है। इससे स्पष्ट है कि धवलगृह में सोपान पंक्ति भी बनायी जाती थी। भवन-स्थापत्य में उसका प्रमुख स्थान था। उद्योतन ने पुरन्दरदत्त के वासभवन की दद्दर-सोपानपंक्ति (८४-२५) का उल्लेख किया है। इससे ज्ञात होता है कि सीढ़ियाँ अधिक घनी बनायीं जाती थीं, जिससे चढ़ने-उतरने में परिश्रम न हो। प्राचीन स्थापत्य के अनुसार धवलगृह के द्वार में प्रवेश करते ही ऊपर जाने के लिए दोनों ओर सोपानमार्ग होता था।
उपघर-कुवलयमाला में भवन के छोटे कमरों के लिए कई शब्द प्रयुक्त हुए हैं। मायादित्य को जब चोर समझकर पकड़ लिया गया तो उसे उपघर में बन्द करने का आदेश दिया गया (५९.२१)। उसके विलाप करने पर भी उसे घर-कोट्ठ में बन्द कर दिया गया (५९.२६) । नरक के दुखों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वहाँ छोटे घरों के दरवाजे भी छोटे होते थे-घडियालयं मडहदारं (३६.१६)। ये शब्द तत्कालीन भवन-स्थापत्य में भी प्रयुक्त होते रहे होंगे।
इन प्रमुख पारिभाषिक शब्दों के अतिरिक्त उद्द्योतन ने भवन-स्थापत्य से सम्बन्धित निम्न शब्दों का भी उल्लेख किया है-णिज्जूहय (२४९.१७),
१. कुमारस्वामी, एन्शेण्ट इंडियन आरकिटेक्चर, पैलेसज । २. अ०-का० सां० अ०, पृ० ३९. ३. अ०-ह० अ०, पृ० २१० पर उद्धृत ।