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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन बार उल्लेख किया है। राजा दृढ़वर्मन् के महल में वंशपरम्परा से पूजित कुलदेवता राजश्री देवी थी।' पुत्र प्राप्ति के लिए राजा कुलदेवता की अर्चना करने देवगृह में प्रविष्ट हुआ था। (पविट्ठोराया देवहरयं १४.८)। देवी ने उसे वरदान दिया था (१५.१२) । वासवमन्त्री के महल में अर्हन्त भगवान् का देवगृह था (३२.१७) । चिन्तामणिपल्ली के सेनापति के अन्तःपुर में देवगृह स्थित था (१३६.५) । उसमें स्वर्ण के दरवाजे लगे हुए थे तथा उसके भीतर स्वर्ण एवं रत्नमयी प्रतिमा स्थित थी। देवगृह में स्नान करके लोग पूजा के लिए जाते थे (१४५.२२)।
उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि देवगृह का निर्माण धवलगह के ऊपरी तल पर होता था तथा राजप्रासाद के अतिरिक्त महापल्ली के स्थापत्य में भी देवगह बनाये जाते थे। लालकिले में स्थित मोतोमस्जिद देवगृह का ही मुगलकालीन रूप है । लन्दन के हेम्पटन कोर्ट में राजकीय पूजा स्थान को रायलचेपल कहा गया है।
१. अत्थि देवस्स महाराय-वंस-प्पसूया पुव्व-पुरिस-संणेज्झा रायसिरी-भगवई कुल
देवया–१३.२८. २. महंतं कणय-कवाड-संपुड-पडिच्छण्णं दिळं देव-मंदिरं । तत्थ उग्घाडिऊण
दिलाओ कणय-रयण-मइयाओ पडिमाओ-१३९.६. ३. अ०-ह० अ०, पृ० २१३.