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परिच्छेद पाँच भवन स्थापत्य
उद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में भवन-स्थापत्य से सम्बन्धित अनेक पारिभाषिक शब्दों का उल्लेख किया है। विभिन्न प्रसंगों में उल्लिखित निम्न शब्द स्थापत्य की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
ध्वजा-ध्वजा के लिए धवल-ध्वजपट (७.१८), कोटिपताका (३१.२२, १०३.४, १४०.२) तथा सिंहपट (१९९.३०) आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। भवनों की ध्वजाएँ इतनी ऊँची होती थीं कि सूर्य के घोड़े उनकी हवाओं से अपने परिश्रम को शान्त करते थे (७.१६) । इस साहित्यिक अभिप्राय का भारतीय साहित्य में बहुत उल्लेख हुआ है।
तुंगभवन-ऊँचे भवनों के लिए तुंगभवन (७.१५), तुंग-अट्टालक (३१.१६), तुंग-शिखर (९२.२५) एवं तुंग (९७.७) शब्दों का प्रयोग हुआ है । सम्भवतः तुंग शब्द भवन के ऊँचे कंगूरों के लिए प्रयुक्त होता था।
शिखर-विनीता नगरी के भवन-शिखर कृष्णमणियों से बनाये गये थे जो मेघसमूह सदृश थे (७.१७)। समवसरण की रचना में रत्नों के शिखर बनाये गये थे (९६.३३)। प्राचीन स्थापत्य में चौसर भवनों के स्थान पर शिखरयुक्त भवन बनाने का अधिक प्रचलन था।
तोरण-भवन के प्रमुख द्वार पर तोरण बनाये जाते थे । विनीता नगरी के भवनों के तोरण मणियों से (७.१५) तथा समवसरण के तोरण स्वर्ण से बनाये गये थे (९७.२) ।
कुवलयचन्द्र को देखने के लिए नगर की कुल-बालिकाएँ भवन के विभिन्न स्थानों पर बैठी थीं,' जहाँ से राजमार्ग में जाता हुआ कुमार दिखायी
१. इय जा तूरंति दढं णयर-कुल-बालियाओ हियएण। ____ता णयरि-राय-मग्गं संपत्तो कुवलयमियंको ।। -२५.७.