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________________ नगर स्थापत्य बार इसका उल्लेख है। ज्ञात होता है कि आठवीं सदी तक नगर सन्निवेश में त्रिगड्डों का भी निर्माण होने लगा था, जिन्हें आजकल त्रिराहा कहते हैं । हट्ट-नगर के प्रसिद्ध राजमार्गों तथा चत्वरों के किनारे-किनारे बाजार होती थीं, जिन्हें उद्योतन ने हट्ट (२०३.१०) तथा विपणिमार्ग (२६.२८) कहा है। आजकल हट्ट को हाट कहा जाता है। विपणिमार्ग का विशेष विवरण आगे पृथक् रूप से प्रस्तुत किया गया है। नगरसन्निवेश की उपर्युक्त सामग्री के अतिरिक्त उद्द्योतनसूरि ने कुव० में नगर के अन्य प्रमुख स्थानों का भी विभिन्न प्रसंगों में उल्लेख किया है। यथा-देवकुल (५८.३२), तडाग (२४७.२२), सूनाघर (५८.३२), आराम (२५९.१८), सरहद (२६१.१३), चट्टमठ (१५७.१६), पवा (२०३.१०), वापी (२०८.२८), पावसथ (८२.३३), सभा (१९९.३०), सत्रागार (२७.३३), मंडप (३१.१४), उद्यान (२०८.२८), स्कन्धावार (१९४.२९) आदि इनमें से अधिकांश का विशेष परिचय सामाजिक संस्थाओं के अन्तर्गत सामाजिक जीवन वाले अध्याय में दिया गया है। नगरसन्निवेश में स्कन्धावार एवं भवन-स्थापत्य का विशेष महत्त्व है । अतः उनका परिचय यहाँ प्रस्तुत है । स्कन्धावार उद्द्योतनसूरि ने कुव० में स्कन्धावार का उल्लेख कई प्रसंगों में किया है। कुमार कुवलयचन्द्र ने अपने पिता का पत्र पाकर विजयपुरी से अयोध्या के लिए प्रस्थान की तैयारी की और दूसरे दिन विशाल स्कन्धावार से प्रयाण प्रारम्भ कर दिया (१८४.२२)। कुछ दूर जाकर कुमार ने पौरजनों से विदा ली तथा कुछ और आगे जाकर अपने ससुर एवं सास से वापिस लौट जाने की प्रार्थना की (१८४.२२,२४)। रास्ते में मुनि के चित्रपट को देखकर कुमार कुवलयचन्द्र पुनः स्कन्धावार निवेश में लौट आया।' वहाँ से चलकर वह विन्ध्याटवी में पहुँचा । वहाँ पड़ाव डाल दिया। सुबह प्रयाणक वाद्य बज उठा (१९८.२२)। उसके शब्द से स्कन्धावार के सभी परिजन जाग गये। समान बाँधने की तैयारी करने लगे। हाथी पर हौदे रखे गये, अश्वों पर पलान कसे गये, ऊँट लादे गये, बैल लादे गये, रथ जोत दिया गया, गाड़ियाँ हाँक दी गयी, सामान के पात्र तैयार कर लिये गये, तम्बू लपेट लिए गये-संवेल्लिज्जति पडउडीओ, सैनिकों ने वर्दियाँ पहिन लीं (परिहिज्जति समायोगे), आयुध समेट लिए गये और पैदल सैनिक आगे चल पड़े (१९८.२२-२७)। एक अन्य प्रसंग में, कामगजेन्द्र उज्जयिनो की राजकुमारी को व्याहने के लिये अपनी महारानी के साथ स्कन्धावार-सहित चल पड़ा। कुछ दूर जाकर पड़ाव डाला। रात्रि होते ही स्कन्धावार के अधिकांश लोग सो गये। किन्तु पहरेदार जागते रहे तथा गीत गाते रहे (२३४.१) । १. संपत्ता तं खंधावार-णिवेसं । तत्थ कय-कायव्व-वावारा ।- १९४.२९.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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