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________________ ३१० कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन की चौड़ाई के कारण ही उन्हें महापथ भी कहा है-(१४५.९, १५६.५, २०३.१५)। रथ्या-प्राचीन ग्रन्थों में राजमार्गों से छोटे मार्गों को उपरथ्या तथा रथ्या कहा गया है।' उद्योतन ने इसे 'रच्छा' कहा है-(५८.३२, २४७.२२, २५२.२ आदि)। किन्तु रथ्या का अर्थ शब्दकोश में 'मुहल्ला' दिया गया है। सम्भव है, मुहल्लों की संकरी गलियों को रथ्या कहा जाता रहा हो । उद्योतन ने इन छोटी गलियों को वीथि (११७.३) तथा कतार-संकर (१९९.२८) भी कहा है । कुमार के अभिषेक के समय कतारसंकरों को साफ किया गया था । चत्वर-राजमार्ग एक दूसरे को समकोण पर काटते थे। इनकी कटान से चौराहे वनते थे। प्राचीन ग्रन्थों में चौराहों के लिए बत्वर,3 चतुष्पथ, तथा शृंगाटक,' शब्द आते हैं। उद्द्योतनसूरि ने चौराहों के लिए चतुष्क और चत्वर शब्दों का एक साथ प्रयोग किया है-चउक्क-चच्चर (१४५.९, १५६.५, ५८.३२ आदि) । सम्भव है, चतुष्क और चत्वर में छोटे-बड़े चौराहे का भेद रहा हो। बड़े नगर के चौराहों को नगरचत्वर (णयर-चच्चरे ८६.२) कहा जाता था। उद्योतन ने नगर के चौराहे पर स्थित कल्याणकारी केन्द्र का (९९.२२) तथा शरद ऋतु में नगर के चौराहों पर नटों द्वारा नृत्य करने का उल्लेख किया है। अग्निपुराण में (अ० ६५ पंक्ति ४) नगर के चौराहों पर सभागार बनाने का उल्लेख है, जहाँ नागरिक मनोविनोद के लिए एकत्र होते थे। इससे ज्ञात होता है नगरचत्वर मनोविनोद के भी केन्द्र थे। सम्भवत: इसीलिए उद्द्योतन ने कई वार किसी व्यक्ति को खोजने (५८.३२) तथा कोई भी घोषणा आदि करने के प्रसंग में चत्वरों का अवश्य उल्लेख किया है।' ___सिंगाडय-कुव० में चौराहों के साथ ही त्रिगड्डों का भी उल्लेख हुआ है। त्रिगड्डों के लिए शृगाटक एवं त्रिक' शब्द का प्रयोग उद्योतन ने किया है। प्राचीन ग्रन्थों में त्रिगड्डों का उल्लेख कम मिलता है, जबकि कुव० में कई १. समरांगणसूत्रधार, पृ० ३९. २. डा० शुक्ला के मतानुसार यही उपमार्ग (रथ्यायें-उपरथ्यायें) पुर को मुहल्ल _में बाँटते हैं---भा० स्था०, पृ० ८६. ३. मृच्छकटिकम्, अंक १. ४. अ० शा०, पृ० १४५. ५. शृगाटक चतुष्पथे-अमरकोष, द्वितीय काण्ड । ६. मृच्छकटिकम्, अंक १. ७. एक्कम्मि य णयरि-चच्चरे णडेण णच्चिउपयत्तं, (१०३.१५). पाडहिओ घोसिच पयत्तो। कत्थ । अवि य । सिंगाडय-गोउर-चच्चरेसु-पंथेसु-हट्ट-मग्गेसु । घर-मढ-देवउलेतुं आराम-पवा-तलाएसुं॥-२०३.१०. ९. तिय-चउपक-चच्चर, १४५.९.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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