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________________ वादित्र को 'हुरुक्का' कहा जाता है।' डमरुक शिव का वाद्य होने के कारण लोक में भी काफी प्रचलित है। सुषिर वाद्य जो वाद्य वायु के दबाव से बजाये जाते हैं, वे सुषिर कहलाते हैं। उद्योतनसूरि ने सुषिर वाद्यों के अन्तर्गत वेणु, शंख, एवं काहला का उल्लेख किया है। वेणु-कुवलयमाला में वंश (२६.१८), वेणु (९६.२४), एवं वंशवीणा (१८१.३१) शब्दों का प्रयोग वंशी के लिए हुआ है। बांस से बने होने के कारण ही इस वाद्य को वंश एवं वेणु कहा जाता था। लोक में इसके लिए वाँसुरी शब्द अधिक प्रचलित है। नाद उत्पन्न करने वाली वंश-नलिका होने के कारण प्रारम्भ में इसका नाम नादी भी था।२ वंशी के जन्म के सम्बन्ध में कालिदास ने सुन्दर कल्पना की है। उनके अनुसार किन्नर ने वायुप्रवेश के कारण छिद्रित वंश नलिका से निकलती हुई मधुरध्वनि को सुनकर नलिका को वंशी का रूप दिया। किन्तु इसके पूर्व भी वेणु के उल्लेख प्राचीन साहित्य में मिलते हैं । कृष्णभक्ति के विकास के साथ-साथ वेणु के प्रचार में भी वृद्धि हुई है। शंख-उद्द्योतनसूरि ने विभिन्न प्रसंगों में १३ बार कुवलयमाला में शंख का उल्लेख किया है । प्रायः शंख इन अवसरों पर फूंके जाते थे: समुद्र-यात्रा के समय (पवादियाइं संखाई, ६७.६), पूजा के समय (१३२.२३), सार्थ के प्रयाण के समय (१३५.२१, १८१.३१), विवाहोत्सव पर (पूरियाई संखाई १७१.७), नगरप्रवेश के समय (२००.१), प्रातःकाल राजभवनों में (२६९.९) तथा राज-दरबारों में मध्याह्न एवं सायंकाल के समय। उद्द्योतन ने राजदरबार में बजने वाले शंखों को जामशंख तथा मध्याह्नशंख-मझण्ण-संख-सई (२०७.८) कहा है। इनके बजते ही राजदरबार के लोग दैनिक कार्य करने लग जाते थे।" संगीतशास्त्र में शंख की गणना सुषिर वाद्यों में की जाती है। यह शंख नामक जलकीट का आवरण है और जलस्थानों-विशेषकर समुद्रों में उपलब्ध ४. मि०-भा० वा० वि०, पृ० २०२. १. वैदिक इण्डेक्स, भाग १, पृ० ४४१. २ कुमारसंभव, १.८. ३. उय जाम-संख-सद्दो कुविय-कयंतस्स हुंकारो। -१९९.२२. ४. तं च सोऊण समुट्ठिया सव्वे धम्म-कज् जाई काउंसमाढत्ता।-१९९.२३.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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