________________
वादित्र
२८९ पटह बज रहा था (१५२.१९)। राजा दृढ़वर्मन् ने नगर में घोषणा करने के लिए पाटहिक को बुलाया-संपत्तो पाडहियो (२०३.७) । पाटहिक ने नगर के चौराहों आदि पर घोषणा करने के बाद ढं ढं ढं करके ढक्का बजाया।'
इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि पटपटह प्रातःकाल राजभवनों में निश्चित रूप से बजाया जाता था। अत: यह एक मांगलिक वाद्य था। पटह शास्त्रीय तथा लोक संगीत दोनों में प्रयुक्त होता था। अतः प्राचीन ग्रन्थों में मृदंग के बाद पटह के सबसे अधिक उल्लेख मिलते हैं। संगीत-रत्नाकर में पटह के दो प्रकारों--मार्गीपटह और देशीपटह का विस्तृत विवेचन किया गया है। संगीतपारिजात में पटह को ढोलक कहा गया है-पटह ढोलक इति भाषाया। इससे ज्ञात होता है कि प्राचीन युग का पटह मध्ययुग में ढोलक कहा जाता था। हिन्दी शब्दसागर में पटह का अर्थ नगाड़ा और दुदंभि किया गया है । कुवलयमाला के संदर्भ से इतना और ज्ञात होता है कि पटह बजानेवाले को पाटहिक कहते थे तथा डोंब जाति पटह बजाने के लिए प्रसिद्ध थी।
ढक्का-उद्योतन ने नगर में घोषणा करने के प्रसंग में ढक्का (२०३. १३) तथा प्रयाणक ढक्का का उल्लेख किया है। कुमार कुवलयचन्द्र के स्कन्धावार में जैसे ही मेघसदृश गंभीर शब्द करनेवाला प्रयाणक ढक्का बजा तुरन्त ही स्कन्धावार के परिजन उठ गये एवं जाने की तैयारी करने लगे। यशस्तिलक में भी ढक्का का युद्ध के प्रसंग में उल्लेख हुआ है।
संगीत ग्रन्थों में डक्का को अवनद्ध वाद्य कहा गया है। संगीत-रत्नाकर के अनुसार यह लकड़ी का बना वर्तुलाकार वाद्य है, जिसके दोनों मुंह पर चमड़ा मढ़ा रहता है। दोनों मुख तेरह-तेरह अंगुल चौड़े रखे जाते हैं। इसको वाँयीं बगल में दबाकर दाहिने हाथ से डंडी द्वारा बजाया जाता है। उद्योतनसूरि ने इसकी आवाज ढं ढं ढं ढं जैसी बतलायी है। आजकल भी ढक्का या ढोल का प्रचलन है । ढक्का के छोटे आकार को ढुलकिया कहा जाता है।
भेरी-कुवलयमाला में भेरी का उल्लेख अन्य वाद्यों के साथ हआ है (९६.२३, १३२.१०, १८१.३१)। एक अन्य प्रसंग में उद्योतन ने कहा है कि
१. एवं च घोसेंतेण 'ढं ढं ढं ढं' ति अप्फालिया ढक्का-२०३.१३ । २. सं० २०, ६.८०५. ३. सजल-जलय-गंभीर-धीर-पडिसद्द-संका" अप्फालिया पयाणय-ढक्का-१९८.२१. ४. प्रहितासु वित्रासितसैन्यसमाजचिक्कासु ढक्कासु । पृ० ५८०. ५. काशिका, ४.२, ३५.
सं० र०, ६.१०९०, ९४. ७. मि०-भा० वा० वि०, पृ० १९९ (थीसिस).