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परिच्छेद तीन शब्द-सम्पत्ति
कुवलयमालाकहा महाराष्ट्री प्राकृत में लिखी गई है, किन्तु उसमें प्रायः अन्य प्राकृतों का भी प्रयोग हुआ है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि अपभ्रंश, पैशाची, देशी एवं द्रविड भाषाओं के शब्दों को भी इसमें ग्रहण किया गया है। ग्रन्थ में इन सब भाषाओं के कुछ ऐसे शब्दों का भी प्रयोग हुआ है, जिनके अर्थ सरलता से ग्रहण नहीं होते तथा जो भूगोल, व्यापार एवं वातचीत आदि प्रसंगों में पारिभाषिक हो गये थे। अतः ग्रन्थ के हार्द को समझने के लिए ऐसे कुछ शब्दों की सूची यहाँ दे देना उचित होगा। प्राकृत-अपभ्रश के कोश-निर्माण में यह सूची सहायक हो सकती है। इस शब्द-सूची में अपभ्रश एवं देशी भाषा के शब्द भी सम्मिलित हैं। ग्रन्थ का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करते समय इन सवका उपयोग किया जा सकेगा।
अंतालुहणो (४७.२७) = अंतरंग, प्रियपुत्र अंविलं (५८.२०) = .
खट्टी वस्तु अड्डे अरडे (१५२.२५) = संख्यावाचक अप्पां-तुप्पां (१५३.३) = हम-तुम अम्हं काउ तुम्हं (१५३.५ = हमने किया तुमने अडि पांडि मरे (१५३.७) = वह जाता है अटि पुटि रंटि (१५३.११) = वह जाना, आना अणाढियं (१३३.२२०) = अनादृत अणोर-पारे (७०.१३) = प्रचुर अत्थाण-समयं (८४.३) = सभा का समय अब्बावार (२०४.३)
व्यापार-वर्जित अब्भत्तिया (४.१७)
अभ्यर्थित