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________________ २५६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्यनय है।' बाद में जे० क्यूपर ने इस पर और विशेष प्रकाश डाला है ।२ डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने यह सम्भावना व्यक्त की है कि गुणाढ्य की बृहत्कथा का पैशाची-संस्करण उद्द्योतनसूरि के समय में विद्यमान था, जिसका उपयोग उन्होंने इस प्रसंग में किया है। १८ देशों के व्यापारियों द्वारा प्रयुक्त विशिष्ट शब्द विजयपुरी के बाजार में जिन १८ देशों के व्यापारी उपस्थित थे उनकी भाषाएँ भी भिन्न थीं। प्रत्येक व्यापारी कुछ विशिष्ट शब्दों का प्रयोग अधिक करते थे। इन शब्दों की पहचान एवं अर्थ के लिए डा० ए० मास्टर एवं डा० उपाध्ये ने अपना अध्ययन प्रस्तुत किया है । तदनुसार इस प्रसंग में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ-निश्चय इस प्रकार किया जा सकता है। १. गोल्ल :-'अड्डे' (१५२.२४)-अड्डे या अरडे का अर्थ लगाना कठिन है । चूंकि गोल्ल आभीर जाति के सदृश थे, सम्भव है, पशुत्रों को हाँकने के लिए इस शब्द का अधिक प्रयोग होता रहा हो। मध्यप्रदेश में हल के बाँयी ओर चलने वाले बैल को 'अर्र' कहकर हाँका जाता है। २. मध्यदेश :-'तेरे मेरे आउ'-मध्यदेश में आजकल हिन्दी अधिक बोली जाती है। 'तेरे-मेरे आउ' हिन्दी के तेरे, मेरे, आयो' शब्दों के प्राचीन रूप हो सकते हैं। ३. मागध :-'एगे ले'-'एगे ले' में मागधी का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। कर्ता एक वचन में 'ए' का प्रयोग तथा 'र' के स्थान पर 'ल' का होना मागधी भाषा के अनुकूल है। ४. अन्तर्वेद :--'कित्तो-किम्मो'-'कित्तो किम्मो' शब्द भी हिन्दी भाषा के प्राचीन रूप प्रतीत होते हैं । बुंदेलखण्ड में कितने के लिये 'कित्तो' कहा जाता है। इस देश का व्यापारी 'कित्तो' शब्द का प्रयोग हो सकता है 'कितने के लिये ही करता रहा हो। ग्रन्थ की 'पी' प्रति में 'किं ते किं मो' शब्दों का प्रयोग हुआ है, जिसमें से मो का अर्थ 'वयम्' हो सकता है । तव वाक्य का अर्थ होगा-कहाँ तुम, कहाँ हम। 9. His readings and renderings need minor improvements here and there. --Kuv. Int. P. 138. २. F. B.J. Kuiper-'The Paisaci Fragment of the Kuvalayamala' -Indo-Iranian Journal, Vol. I, 1953, No. 3. 3. The Paişācī language seems to have been represented by the Brahatkathā which had survived in its original form upto the time of Uddyotanasuri. -Kuv. Int. P. 120. ४. A. Master-BSOAS XIII-2. 1950, PP. 413.15. ५. Kuv. Int. P. 144-45 (Notes).
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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