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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन धार्मिक जीवन वाले अध्याय में किया गया है। शेष सन्दर्भ भाषा-वैज्ञा. निक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें जो शब्द प्रयुक्त हुए हैं वे अधिकतर अपभ्रश के साहित्यिक स्वरूप से मिलते-जुलते हैं। इस सम्पूर्ण वार्तालाप का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुवाद श्री ए० मास्टर ने किया है।' डा० उपाध्ये के अनुसार ए० मास्टर के अध्ययन में मूल सन्दर्भो में भिन्नता है एवं शब्दों की व्याख्या में भी नवीन प्रकाश डालने के लिए पर्याप्त गुजाइश है। अतः इस सन्दर्भ का पुनः अध्ययन किया जाना अपेक्षित है। ग्राममहत्तरों की बातचीत
___ मायादित्य ने मित्रद्रोह जैसे पाप से मुक्ति पाने के लिए गांव के प्रधानों को एकत्र कर अग्नि में जलने के लिए उनसे सहमति एवं आग ईंधन आदि मांगादेह, मज्झ, पसियह, कट्ठाइ-जलणं च (६३.१७) । यह सुनकर एक ग्राममहत्तर ने कहा-यह सब (मित्रद्रोह का पाप) दूषित मन से करने पर पाप होता है। आचार्यों ने यह कहा है--एह एहउं दुम्मणस्सहुँ । सव्वु एउ आयरिउ-तुमने कोई कपट नहीं किया है - तुझ ण उ वंकु चलितउं-। जैसा प्रारब्ध (देव) होता है वैसी मति होती है एवं तदनुसार ही आचरण करना पड़ता है-प्रारद्धउ एवं प्रइ सुगति । प्रोतु वर भ्राति संप्रतु-(६३-१७-१८) ।
तव दूसरे ने कहा-तुमने धन और सुख की प्राशा में जो कुछ भी किया है वह सव दुष्ट मनवाले मोह के कारण । अतः इस समय तुम (दान) बोल दो, उसी से तुम्हारी शुद्धि हो जायेगी-जं जि विरइदु धण-लवासाए। सुह-लंपडेण तुबभई । दुत्थट्ठ-मण-मोह-लुद्धउ। तु संप्रति ब्रोल्लितउं । एतु एतु प्रारद्ध भल्ल-(६३. २०)।
तब एक वृद्ध महत्तर ने कहा-अग्नि में तपकर स्वर्ण तो शुद्ध हो सकता है, किन्तु मित्रद्रोही की शुद्धि कहाँ ? कापालिकव्रत धारण करने में भी इसकी शुद्धि नहीं-एत्थ सुज्झति किर सुवणं पि वइसाणर-मुह-गत। कउप्राव मित्तस्स वंचण । कावालिय-वन-धारणे । एउ एउ सुज्झज्ज णहि, (६३. २२)।
___ तब पूरे द्रंग के स्वामी ज्येष्ठमहामहत्तर ने कहा-धवल वाहन एवं धवलदेह वाले महादेव के सिर पर निर्मल जलवाली जो गंगा बहती है, उस पवित्र
१. ए० मास्टर-बी० एस० ओ० ए० एस० भाग १३, पार्ट ४, पृ० १००५ आदि । R. The text differs here and there from the one presented by
Master; there readings are exhaustively noted, and there would be a good deal of margin for difference in interpreta
tion. Kuv. Introduction P. 136 (Notes). ३. दे जलणं पविसामि ति चित्तयंतेण मेलिया सव्वे गाम-महयरा-(६३. १३) ४. तओ अणेण भणियं चिर-जरा जुण्ण-देहेण - ६३. २१ ५. तओ सयल-दंग-सामिणा भणियइ जेट्ठ-महामयहरेण-६३. २४