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भाषाएँ तथा बोलियाँ
२५३ कौन-कौन से तीर्थ कर आये ? क्या-क्या व्याधियाँ अथवा पाप नष्ट हो गये। भो-भो कयरहिं तित्थे दे चेवागयाहं कयरा वाहिया पावं च फिट्टइ (५५.१४)।
दूसरे ने कहा-'वाराणसी' कोढियों से मुक्त नहीं है, अतः 'वाराणसी' जाने से कोढ़ मिट जाता है-अभुक्का 'वाणारसी' कोढिएहि, तेण वाणरसीहिं गयहं कोढो फिट्टइ (५५.१५)।
तीसरे ने कहा-हं, यह क्या वतान्त तुमने कहा? अरे कहाँ कोढ़, और कहाँ वाणारसी ? लोक में यह प्रसिद्ध है कि मूलस्थान के भट्टारक जो कोढ़ के देव हैं (वे) कोढ़ को नष्ट करते हैं-हुहु कहिओ वुत्तं तपो तेण जंपिएल्लउ । कहिं कोढं कहिं वाणारसि । मूलत्थाणु भडारउ कोढई जे देइ उदालइज्जे लोयडे (५५.१५-१६)।
___चौथे ने कहा-अरे यदि मूलस्थान के देवता कोढ़ को दूर करते हैं तो फिर किस कार्य को करने से अपना कोढ़ अच्छा होगा ?--रे रे जइ मूलस्थाणु देइजे उद्दालइज्जे कोढई, तो पुणु काई कज्जु अप्पाणु कोढयल्लउ अच्छइ ।
अन्य ने कहा-यदि कोढ़ अच्छा नहीं होता तो कोई कार्य नहीं करना हैजा ण कोढिएल्लउ अच्छइ ता ण काई कज्जु । महाकाल भट्टारक की जो छः मास सेवा करता है उसका कोढ़ जड़ से नष्ट हो जाता है-महाकालभडारयहं छम्मासे सेवण्ण कुणइ जेण मूलहेज्जे फिट्टइ (५५.१८) ।
दूसरे कोढ़ी ने कहा--इससे क्या, जिस तीर्थ में जाने से बहुन पुराना पाप नष्ट हो जाता हो मुझे वह बताओ-काई इमेण, जत्थ चिर-परूढ़ पावु फिट्टइ, तं मे उद्दिसह तित्थं-(५५.१९)।
दूसरे ने उत्तर दिया-प्रयाग-वट को प्रदक्षिणा करने से बड़ा से बड़ा पाप तुरन्त ही नष्ट हो जाता है-प्रयाग-वड-पडियहं चिर-परूढ़ पाय वि हत्थ वि फित्ति -(५५-१६)।
अन्य ने कहा-पहले पाप पूछ, फिर पाँव वढ़ाना-पाव पुच्छिय पाय साहट्टि- (५५.२०)।
दूसरे ने उत्तर दिया-हे गांव के प्रधान ! यदि माता-पिता का बध किया हो, तथा महापाप किया हो तो भी गंगा-संगम में नहाने और भैरव-भट्टारक को प्रदक्षिणा करने से नष्ट हो जाता है-खेड्डु मेल्लहं (?), जइ पर-माइ-पिइवह-कयई पि महापावाई गंगा-संगमें व्हायहं भइरव-भडारय-पडियहं णासंति (५५-२०-२१)।
मानभट यह सुनकर गंगा-संगम में नहाने के लिए चल पड़ता है(५५-२२,२३)।
प्रस्तुत वार्तालाप में मूल-स्थान, भट्टारक, महाकाल, प्रयाग का अक्षयवट एवं भैरवभट्टारक धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ हैं, इन पर विशेष अध्ययन